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प्रेम का मूल्य
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हमेशा की तरह मैं आपको एक और बेहद पुरानी बात बताने जा रहा हूँ। किसी समय, एक द्वीप पर सभी अनुभूतियाँ एक साथ रहा करती थीं खुशी, ज्ञान, उदासी, प्रेम, आदि। एक दिन यह आकाशवाणी हुई कि द्वीप जल्द ही डूब जाएगा। यह सुनते ही प्रेम को छोड़कर सभी अनुभूतियों ने अपनी-अपनी नायें बनानी शुरू कर दी और एक-एक करके वहां से जाने लगीं।
प्रेम ने वहीं रुकने का निश्चय किया। उसने तय किया कि वह अन्तिम क्षण तक वहीं डटा रहेगा।
लेकिन पानी चढ़ता गया। जब द्वीप लगभग डूब गया तब प्रेम ने मदद की गुहार
लगाई।
समृद्धि अपनी बड़ी सी नाव से वहां से गुज़र रही थी। प्रेम ने उससे साथ ले चलने की प्रार्थना की।
समृद्धि ने कहा नहीं, मेरी नाव में बहुत सा सोना-चांदी है। इसमें तुम्हारे लिए जगह
नहीं है।"
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मायूस प्रेम ने सुंदर सी नाव में गुजर रही दुनियादारी से भी बचाने की फरियाद की। "नहीं भाई, तुम पूरी तरह भीग चुके हो मेरी नाव गंदी हो
दुनियादारी ने कहा
जायेगी।"
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उदासी की नाव अभी ज्यादा दूर नहीं गयी थी। प्रेम ने उससे चिल्लाकर कहा "उदासी! मुझे अपने साथ ले चलो!"
उदासी ने जवाब दिया- "ओह... प्रेम! मैं इतनी उदास हूँ कि बस अकेले ही रहना चाहती हूँ!"
खुशी भी ज्यादा दूर न थी लेकिन वह अपने में इतनी मग्न थी कि उसे प्रेम की पुकार सुनाई ही न दी।
पानी प्रेम के गले तक आ पहुंचा था। उसे लगा कि उसका अंत समय आ गया है।
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