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तभी उसे एक आवाज़ सुनाई दी "मैं आपके साथ चलूंगी मौत भी मुझे आपसे दूर नहीं कर सकती।" यह व्यापारी की पहली पत्नी की आवाज़ थी उसकी ओर कोई भी कभी ध्यान नहीं देता था। वह बहुत दुबली-पतली, रोगी, और कमज़ोर हो गयी थी।
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उसे देखकर व्यापारी ने बहुत दुःख भरे स्वर में कहा "मेरी पहली पत्नी, मैंने तो तुम्हें हमेशा नज़रअंदाज़ किया जबकि मुझे तुम्हारा सबसे ज्यादा ख़याल रखना चाहिए था ! "
व्यापारी की ही भांति हम सबकी भी चार पत्नियाँ होती हैं:
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हमारी देह हमारी चौथी पत्नी है। हम इसका कितना भी बेहतर ध्यान रखें, मौत के समय यह हमारा साथ छोड़ ही देती है।
हमारी धन-संपत्ति हमारी तीसरी पत्नी है। हमारे मरने के बाद यह दूसरों के पास चली जाती है।
हमारा परिवार हमारी दूसरी पत्नी है। हमारे जीवित रहते यह हमारे करीब रहता है, हमारे मरते ही यह हमें बिसरा देता है।
हमारी आत्मा हमारी पहली पत्नी है जिसे हम धन-संपति की चाह, रिश्ते-नाते के मोह, और सांसारिकता की अंधी दौड़ में हमेशा नज़रअंदाज़ कर देते हैं।
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