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सगुणों में संतुलन
एक दिन एक धनी व्यापारी ने लाओ-त्जु से पूछा - "आपका शिष्य येन कैसा व्यक्ति
है?"
लाओ-त्जु ने उत्तर दिया - "उदारता में वह मुझसे श्रेष्ठ है।"
"आपका शिष्य कुंग कैसा व्यक्ति है?" - व्यापारी ने फ़िर पूछा।
लाओ-त्जु ने कहा - "मेरी वाणी में उतना सौन्दर्य नहीं है जितना उसकी वाणी में है।"
व्यापारी ने फ़िर पूछा - "आपका शिष्य चांग कैसा व्यक्ति है?"
लाओ-त्जु ने उत्तर दिया - "मैं उसके समान साहसी नहीं हूँ।"
व्यापारी चकित हो गया, फ़िर बोला - "यदि आपके शिष्य किन्हीं गुणों में आपसे श्रेष्ठ हैं तो वे आपके शिष्य क्यों हैं? ऐसे में तो उनको आपका गुरु होना चाहिए और आपको उनका शिष्य!"
लाओ-त्जु ने मुस्कुराते हुए कहा - "वे सभी मेरे शिष्य इसलिए हैं क्योंकि उन्होंने मुझे गुरु के रूप में स्वीकार किया है। और उन्होंने ऐसा इसलिए किया है क्योंकि वे यह जानते हैं की किसी सद्गुण विशेष में श्रेष्ठ होना का अर्थ ज्ञानी होना नहीं है।"
"तो फ़िर ज्ञानी कौन है?" - व्यापारी ने प्रश्न किया।
लाओ-त्जु ने उत्तर दिया - "वह जिसने सभी सद्गुणों में पूर्ण संतुलन स्थापित कर लिया हो।"
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