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शेर और लोमड़ी
एक घने जंगल में एक लोमड़ी रहती थी जिसके सामने के दोनों पैर शायद किसी फंदे से निकलने की कोशिश में टूट चुके थे। जंगल से लगे हुए गाँव में एक आदमी रहता था जो लोमड़ी को देखा करता था। आदमी को आश्चर्य होता था कि लोमड़ी किस तरह अपना खाना जुटाती थी। एक दिन आदमी ने छुपकर देखा कि एक शेर अपने शिकार को मुंह में दबाकर जा रहा था। उस शिकार में से अपना बेहतरीन हिस्सा लेने के बाद शेर ने बचा-खुचा लोमड़ी के हवाले कर दिया।
दूसरे दिन भी परमेश्वर ने इसी तरह शेर के माध्यम से लोमड़ी के लिए आहार भेजा। आदमी ने यह देखकर सोचा - "यदि परमेश्वर इतने रहस्यपूर्ण तरीके से लोमड़ी का ध्यान रखता है तो क्यों न मैं भी अपना जीवन एक कोने में पड़े रहकर आराम से गुजार दूँ, परमेश्वर मेरे लिए भी रोज़ खाने-पीने की व्यवस्था कर देगा"।
आदमी को अपने ख़याल पर पक्का यकीन था इसलिए उसने खाने की चाह में कई दिन गुजार दिए। कहीं से कुछ भी नहीं आया। आदमी का वज़न गिरता गया, वह कमज़ोर होता गया। वह कंकालमात्र रह गया। बेहोशी छाने से पहले उसने एक आवाज़ सुनी - "ऐ आदमी, तुने ग़लत राह चुनी है, सच्चाई को जान! तूने अपाहिज लोमड़ी के बजाय शेर के रास्ते पर चलना क्यों नहीं चुना!?"
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