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व्यावहारिकता
ज्ञान की खोज में तीन साधक हिमालय तक आ गए। उनहोंने मिलकर यह तय किया कि आध्यात्मिक धरातल पर उनहोंने जो कुछ भी सिखा है उसे वे अपने जीवन में उतारेंगे। अपने विचार-विमर्श में वे इतने लीन हो गए थे कि बहुत रात होने पर उन्हें यह याद आया कि उन तीनों के पास खाने के लिए केवल दो रोटियां ही बची थीं।
उनहोंने एक दूसरे से कहा कि वे इसका निर्णय नहीं करेंगे कि रोटियां किसको खाने के लिए मिलें क्योंकि वे सभी पुण्यात्मा थे। उनहोंने इसका निर्णय ईश्वर पर छोड़ दिया। सोने से पहले उनहोंने प्रार्थना की कि ईश्वर उन्हें इस बात का कोई संकेत दे कि रोटियां किसको खाने के लिए मिलें।
दूसरे दिन वे सभी एक साथ उठ गए। पहले साधक ने कहा - "मैंने यह सपना देखा कि मैं एक ऐसी जगह में हूँ जहाँ मैं पहले कभी नहीं गया था। वहां मैंने आलौकिक शान्ति का अनुभव किया। वहां मुझे एक संत मिले और उनहोंने मुझसे कहा - "मैंने तुम्हें चुना है क्योंकि तुमने अपने जीवन में सदैव त्याग ही किया। तुम्हारे गुणों को देखने के बाद मैंने यह निर्णय लिया है कि तुम्हें ही रोटियां मिलनी चाहिए।"
"यह तो बड़ी अजीब बात है" - दूसरे साधक ने कहा - "मेरे सपने में मैंने यह देखा कि भूतकाल में तपस्या करने के कारण मैं महात्मा बन गया हूँ। और मुझे भी वहां एक संत मिले जो मुझसे बोले - "तुम्हें भोजन की सर्वाधिक आवश्यकता है, तुम्हारे मित्रों को नहीं, क्योंकि भविष्य में तुम्हें भटके हुओं को राह पर लाना है जिसके लिए तुम्हें शक्तिशाली और सामर्थ्यवान बनना होगा।"
फ़िर तीसरे साधक के बोलने की बारी आई: "मेरे सपने में मैंने कुछ भी नहीं देखा, मैं कहीं नहीं गया और मुझे कोई संत नहीं मिला। लेकिन रात में किसी समय मैं अचानक उठा और मैंने रोटियां खा लीं।" ।
बाकी के दोनों साधक क्रोधित हो गए: "यह व्यक्तिगत निर्णय लेने से पहले तुमने हम दोनों को क्यों नहीं उठाया?"
"मैं तुम दोनों को कैसे उठाता? तुम दोनों बहुत दूर कहीं दिव्यलोक में भ्रमण कर रहे थे! कल रात ही हमने आध्यात्मिक शिक्षा को जीवन में उतारने का प्रण लिया था। इसीलिए ईश्वर ने तत्परता से मुझे रात में उठाया और भूखे मरने से बचा लिया!"
मोहम्मद ग्वाथ शतारी द्वारा लिखी गई कहानी
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