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चाय का कप
यह कहानी एक दंपत्ति के बारे में है जो अपनी शादी की पच्चीसवीं वर्षगाँठ मनाने के लिए इंग्लैंड गए और उनहोंने पुरानी वस्तुओं की दुकान याने एंटीक शॉप में खरीददारी की। उन दोनों को एंटीक चीजें खासतौर पर चीनी मिटटी के बर्तन, कप-प्लेट आदि बहुत अच्छे लगते थे। दूकान में उन्हें एक बेजोड़ कप दिखा और उनहोंने उसे दूकानदार से देखने के लिए माँगा।
जब वे दोनों उस कप को अपने हाथों में लेकर देख रहे थे तभी वह कप उनसे कुछ कहने लगा - "आप जानते हैं, मैं हमेशा से ही चाय का यह कप नहीं था। एक समय था जब मैं भूरी मिटटी का एक छोटा सा लौंदा था। मुझे बनाने वाले ने मुझे अपने हाथों में लिया और मुझे खूब पीटा और पटका। मैं चिल्ला-चिल्ला कर यह कहता रहा की भगवान के लिए ऐसा मत करो | मुझे दर्द हो रहा है, मुझे छोड़ दो, लेकिन वह केवल मुस्कुराता रहा और बोला अभी नहीं और फ़िर धडाम से उसने मुझे चाक पर बिठा दिया और मुझे ज़ोर-ज़ोर से इतना घुमाया की मुझे चक्कर आ गए, मैं चीखता रहा रोको, रोको, मैं गिर जाऊँगा, मैं बेहोश हो जाऊँगा!"
"लेकिन मेरे निर्माता ने केवल अपना सर हिलाकर धीरे से कहा - "अभी नहीं"।
"उसने मुझे कई जगह पर नोचा, मोडा, तोडा। फ़िर अपने मनचाहे रूप में ढालकर उसने मुझे भट्टी में रख दिया। इतनी गर्मी मैंने कभी नहीं झेली थी। मैं रोता रहा और भट्टी की दीवारों से टकराता रहा। मैं चिल्लाता रहा, बचाओ, मुझे बाहर निकालो! और जब मुझे लगा की अब मैं एक मिनट और नहीं रह सकता तभी भट्टी का दरवाज़ा खुला। उसने मुझे सहेजकर निकला और टेबल पर रख दिया। मैं धीरे-धीरे ठंडा होने लगा"।
"वह बेहद खुशनुमा अहसास था, मैंने सोचा। लेकिन मेरे ठंडा होने के बाद उसने मुझे उठाकर ब्रश से जोरों से झाडा। फ़िर उसने मुझे चारों तरफ़ से रंग लगाया। उन रंगों की महक बहुत बुरी थी। मैं फ़िर चिल्लाया, रोको, रोको, भगवन के लिए! लेकिन उसने फ़िर से सर हिलाकर कह दिया, अभी नहीं..."
"फ़िर अचानक उसने मुझे फ़िर से उस भट्टी में रख दिया। इस बार वहां पहले जितनी गर्मी नहीं थी, बल्कि उससे भी दोगुनी गर्मी थी। मेरा दम घुटा जा रहा था। मैं चीखा-चिल्लाया, रोयागिडगिडाया, मुझे लगा की अब तो मैं नहीं बचूंगा! लेकिन तभी दरवाज़ा फ़िर से खुला और उसने मुझे पहले की तरह फ़िर से निकलकर टेबल पर रख दिया। मैं ठंडा होता रहा और सोचता रहा कि इसके बाद मेरे साथ क्या होगा"।
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