Book Title: Yogabindu ke Pariprekshya me Yog Sadhna ka Samikshatmak Adhyayana
Author(s): Suvratmuni Shastri
Publisher: Aatm Gyanpith

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Page 18
________________ (xiii) संसार की नदियाँ तो एक ही दिशा में बहती हैं लेकिन चित्ररूपी महानदी उभयवाहिनी है | ऊर्ध्वगामिनी कल्याण का कारण है और अधोगामिनी पतन का कारण । आध्यात्म का प्रथम सोपान है- चित्त का उर्ध्वारोहण - 'चेतो महानदी उभतोवाहिनी, वहति कल्याणाय पापाय च ॥ उमास्वाति ने सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान एवं सभ्य वचारित्र को मोक्ष मार्ग कहा है ।" उसी को आचार्य हेमचन्द्र ने योग के नाम से अभिहित किया है ।" आचार्य हेमचन्द्र योगशास्त्र में योग को परिभाषित करते हुए कहते हैं "धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चारों पुरुषार्थों में मोक्ष अरणी है । योग उसका कारण है । सम्यग्ज्ञान, सम्यग्दर्शन और सम्यवचारित्र रूप रत्नत्रय ही योग है ।"1" आचार्य हरिभद्रसूरि ने उन समरत साधनों को योग माना हैं जिनसे आत्मशुद्धि होती है और मोक्ष के साथ संयोग होता है ।" उपाध्याय यशोविजय जी का भी यही अभिमत है ।" आचार्यं हरिभद्रसूरि के अनुसार आध्यात्मिक्ता एवं समता को विकसित करने वाला, मनोविकारों को क्षय करने वाला तथा मन, वचन एवं काया के कर्मों को संयत रखने वाला धर्म व्यापार ही श्रेष्ठ योग है ।" यही भाव गीता में भी प्रकट हुआ है । 18 महर्षि पतञ्जलि ने योग की परिभाषा देते हुए कहा है "चित्त की वृत्तियों का निरोध करना योग है ।1" याज्ञवत्वय के अनुसार जीवात्मा का परमात्मा के साथ संयोग होना योग है 120 विष्णुपुराण में योग की इन शब्दों में परिभाषा की गई है "आत्मप्रयत्न सापेक्षा विशिष्टा या मनोगतिः " विज्ञान भिक्षु ने अपने ग्रन्थ योगसारसंग्रह में कहा है “सम्यक् प्रज्ञायते " । बौद्ध परम्परा में योग शब्द समाधि या ध्यान के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है । हठयोग साहित्य में भी इसी प्रकार की परिभाषा मिलती है । रघुवंश में इसका अर्थ सम्पर्क, स्पर्श आदि से लगाया गया है । गणित में योग का अर्थ जोड़ / संकलन होता है। ज्योतिषशास्त्र में योग को संयुति, दो ग्रहों का संयोग, तारापुंज, समयविभाग इत्यादि के रूप में स्वीकार किया गया है । चिकित्साशास्त्र में योग का अर्थ अनेक प्रकार के चूर्ण के अर्थ में अभिप्रेत है । The great theosophist Annie Besant Calls it a Science of Psychology. As Dr. R.V. Ranade says or Yoga is a complete science. It is based upon the eternal laws of higher life, and does not require the support of any other science or philosophicd Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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