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प्रथम संस्करण से
सम्पादकीय
भ. महावीर के चरित्र का आश्रय लेकर मुनि श्री ने इस काव्य की रचना की है, जिस 'आमुखम' और प्रस्तावना में पर्याप्त प्रकाश डाला गया है। मुनि श्री ने इसकी पुरानी भाषा में विस्तृत हिन्दी व्याख्या भी लिखी है हमने उसका संक्षिप्त नया रूपान्तर मात्र किया है।
पर
प्रस्तावना लिखते समय यह उचित समझा गया कि उपलब्ध दि. और श्वे. ग्रन्थो की भ. महावीर से सम्बन्धित सभी आवश्यक सामग्री भी सङ्क्षेप मे दे दी जाय। अतः मुख्य-मुख्य बातो में मतभेद सम्बन्धी सभी जानकारी प्रस्तावना में दी गई है । भ. महावीर के विविध चरित्र जो संस्कृत, प्रकृत अपभ्रंश और हिन्दी में अनेक विद्धानों ने लिखे हैं और जिनके निकट भविष्य में प्रकाशन की कोई आशा नहीं है उनकी अनेक ज्ञातव्य बातों का संकलन प्रस्तावना मे किया गया है। कुछ विशिष्ट सामग्री तो विस्तार के साथ दी गई है जिससे कि जिज्ञासु पाठको के सर्व आवश्यक जीनकारी एक साथ प्राप्त हो सके । आशा है हमारा यह प्रयास पाठको को रुचिकर एवं ज्ञानवर्धक सिद्ध होगा ।
श्वे. आगम-वर्णित स्थलों के परामर्श में हमारे स्नेही मित्र श्री पं. शोभाचन्द्रजी भारिल्ल से पर्याप्त सहयोग मिला है, श्री पं. रघुवरदत्तजी शास्त्री ने हमारे अनुरोध पर 'आमुखम' लिखने की कृपा की है, श्री जैन सांखला लायब्रेरी के व्यस्थापक श्री सुजानमलजी सेठिया से समयसमय पर आवश्यक ं पुस्तकें प्राप्त होती रही है । ऐ. पन्नालाल दि. जैन सरस्वती भवन के ग्रन्थो का सम्पादन और प्रस्तावना लेखन में भरपूर उपयोग किया है, श्री पं. महेन्द्रकुमारजी पाटनी किशनगढ ने शुद्धिपत्र तैयार करके भेजा है और ग्रन्थमाला के मंत्री श्री पं. प्रकाशचन्द्रजी का सदैव सद्भाव सुलभ रहा है । इसलिये मैं इन सबका आभारी हूँ ।
मुद्रण-काल के बीच-बीच में बाहिर रहने से तथा दृष्टि-दोष से रह गई अशुद्धियों के लिए मुझे खेद है। पाठको से निवेदन है कि वे पढ़ने से पूर्व शुद्धिपत्र से पाठ का संशोधन कर लेवे ।
ब्यावर 5-2-1968
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हीरालाल सिद्धान्त शास्त्री
ऐ. पन्नालाल दि. जैन सरस्वती भवन,
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