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पेड़-पौधे कितने संवेदनशील होते हैं यह इस पुस्तक में भली-भाँति पुष्ट हुआ है। पेड़-पौधों में पायी जाने वाली विचित्र विशेषताएँ भी रोचक बन पड़ी हैं। कुछ पेड़-पौधे सच झूठ को पहचानते हैं तथा मनुष्य की भाँति सहानुभूति दिखा सकते हैं।
अजीव द्रव्य पाँच प्रकार का है-धर्म, अधर्म, आकाश, काल और पुद्गल। इनमें से काल अप्रदेशी है तथा शेष चार द्रव्य अस्तिकाय रूप हैं। धर्म द्रव्य गति में सहायक निमित्त है, अधर्म द्रव्य स्थिति में सहायक निमित्त है, आकाश समस्त द्रव्यों को स्थान देता है तथा काल वर्तना लक्षण युक्त है। धर्मद्रव्य की समता ईथर से, अधर्मद्रव्य की समता गुरुत्वाकर्षण से की गई है। आकाश एवं काल विज्ञान के लिए अपरिचित नहीं है, किंतु आकाश के आगमिक वर्णन एवं वैज्ञानिक वर्णन में अनुपम समानता है, इसका आभास इस पुस्तक से पाठकों को अवश्य होगा। जैनधर्म में काल की सूक्ष्मतम इकाई 'समय' है जो वर्तमान आण्विक घड़ियों से मापे गए सूक्ष्मतम काल से भी छोटा है। लेखक ने काल का अत्यन्त वैज्ञानिक ढंग से वर्णन किया है।
'पुद्गल' जैनदर्शन का ऐसा पारिभाषिक शब्द है जिसके अन्तर्गत विज्ञान सम्मत समस्त Matter (पदार्थों) का समावेश हो जाता है।
आगमों में उस प्रत्येक द्रव्य को पुद्गल कहा गया है जो वर्ण, गंध, रस एवं स्पर्श से युक्त होता है। यह एक परमाणु से लेकर एक स्कंध तक हो सकता है। सबमें वर्ण, गंध, रस एवं स्पर्श अनिवार्य रूप से पाए जाते हैं। पर्याय परिवर्तन की दृष्टि से एक द्रव्य दूसरे वर्ण, रस, गंध एवं स्पर्श में अथवा स्वयं के वर्णादि में परिवर्तित होता रहता है। विज्ञान में द्रव्य की तीन अवस्थाएँ स्वीकार की गई हैं-ठोस, द्रव और गैस। एक द्रव्य