Book Title: Vardhaman Tap Mahima Yane Shrichand Kevali Charitram Part 02
Author(s): Siddharshi Gani
Publisher: Sthanakvasi Jain Karyalay
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________________ 'पूछे उन्होंने कहा कि लक्ष्मीदत्त सेठ के पुत्र श्रीचन्द्र बहुत गुणवान तथा रूपवान हैं। हमारे सेठ के जमाई भी हैं उनकी अंगुली में उनके नाम की हीरे की अंगूठी पहनी हुई है। धन सेठ की पुत्री धनवती के पति है, मैं उन्हीं सेठ का नौकर हूँ। जब ये सारी बातें सुलोचना ने सुनी तो कहने लगी कि वहीं श्रीचन्द्र थे। त्रिलोचन राजा ने कहा- पुत्री बही तेरे पति हैं मैं अभी कुशस्थल के राजा प्रतापसिंह के पास मंत्रियों को भेजता हूँ कि वे श्रीचन्द्र को भेजें / तब सुलोचना ने भोजन किया / .. / सूक्ष्म बुद्धि वाले चतुर श्रीचन्द्र ने अवदूत का वेष तो किसी को दे दिया और बटोही का वेष पहन कर' घुमते घामते किसी बड़े वन में पहुंचे। कमलों से युक्त निर्मल पानी वाले, चक्रवाक आदि पक्षियों से भरपूर एक बड़े सरोवर को देखकर वहां सूर्यवती रानी के पुत्र ने स्नान किया, स्नान करके श्रीचन्द्र बाहर आकर कुंड की पाल से बा रहे थे कि दूसरी तरह एक उद्यान दिखाई दिया / उसमें एक तरफ आश्रम था, दूसरी तरफ घोड़े, हाथी और कितने ही स्त्री पुरुषों को देखा / ' कितनों को आश्चर्यकारी वेष पहने हुए देखकर सोचने लगे कि ये लोग अवधूत, तापस हैं या योगी. हैं / सोचने के बजाय वहां चाकर ही पूछू। ... प्राम्रवन में प्रवेश करके, बीच में अद्भुत कान्ति वाले, तरह-२ के वेष धारण किये हुये तापस कुमारों को देखा। चारों तरफ चन्द्रमा के समान देदीप्यमानी मोर के पंखों की पादुकायें पड़ी थीं। पास ही में फुले पर झूलती हुयी एक कन्या जो कि पुरुष वेष में थी, देखी। सुवर्ण P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust