Book Title: Vardhaman Tap Mahima Yane Shrichand Kevali Charitram Part 02
Author(s): Siddharshi Gani
Publisher: Sthanakvasi Jain Karyalay
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________________ * 68 10 [ चतुर्थ खराड ] कुछ समय व्यतीत होने पर श्री चन्द्र राजा को मदनसुन्दरी याद आई / लक्ष्मण मंत्री को अच्छी तरह समझा कर मित्र सहित दो उत्तम अश्वों पर बैठ कर थोड़ी ही देर में भयंकर अटवी में आये / वहां वृक्ष ____ पास एक योगी को अतिसार रोग से पीड़ित देखकर श्रीचन्द्र योगी की अनेक प्रकार से सेवा करने लगे और दूर रहे हुए भिल्लपति के गांव से पथ्य औषध आदि लाकर अनेक प्रकार से उपचार किया / राजा ने तेल आदि मसल कर स्नान कराकर योगी को स्वस्थ बनाया। जिससे योगी ने अति हर्षित होते हुए कहा 'हे पुण्यात्मा ! मेरा अभी भी भाग्य उदय में है ऐसी दुर्दशा में भी तुम जैसा बुद्धिशाली मिला / यह अति दुर्लभ पारसमणी तुम ग्रहण करो इसके स्पर्श से सब घातुए सुवर्ण के रूप में बदल जाती है। तुम भाग्यशाली हो जिससे मैं तुम्हें यह समर्पित करता हूँ / पृथ्वी को अनृणी करना, जिनालय बनवाना मेरी मृत्यु के पश्चात इस स्थान पर एक मठ बनवाना / इस प्रकार कह कर श्रीचन्द्र के मना करने पर भी जबरदस्ती पारसमणी उन्हें दे दी। श्रीचन्द्र राजा ने योगी के वचन स्वीकार किये। उस योगी के मर जाने पर उसके कहे अनुसार वहां मठ बनवाया। वहां से मित्र के साथ राजा प्रयाण करते हुए एक वन के मध्य भाग में आये / वहां बांस का जाली में 108 पर्व वाला एक बांस पका हुअा और सीधा शास्त्र लक्षणा से युक्त जानकर उसे काट लिया। उसे काट कर उसके बीच में से एक मोती के जोडे को निकाला। मित्र को श्रीचन्द्र ने कहा जो बड़ा है वह P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust