Book Title: Vardhaman Tap Mahima Yane Shrichand Kevali Charitram Part 02
Author(s): Siddharshi Gani
Publisher: Sthanakvasi Jain Karyalay

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Page 111
________________ 1061 साथ जय लक्ष्मी रुपी माला आभूषण की तरह जिनके गले में सुशोभित हो रही है ऐसे श्रीचन्द्र नगर में प्रवेश करते अत्यन्त सुशोभित हो रहे : थे / मार्ग में चलते हुये श्री गिरि पर्वत पर जब उन्होंने सुना कि माता सूर्यवती ने पुत्र का जन्म दिया है तो हर्ष से दान देकर महोत्सव किया और जेल में से कैदियों को मुक्त कर दिया / सब जगह मनोहर गीत, नृत्य, जगह 2 तोरण बांधे गये और सब जगह हर्ष का साम्राज्य : फैल गया / उस समय गुण विभ्रम राजा को मुक्त करके उसका संमान किया। यह देख गुण विभ्रम राजा श्रीचन्द्र के चरणों में गिर कर कहने लगा मेरे अपराध क्षमा करो, मैं आपका किंकर हूं। उसे आदर से अपने पास प्रासन दिया। कुडलेश ने श्रीचन्द्रपुर नगर में जाकर अति हर्ष पूर्वक सूर्यवती :: माता को नमस्कार किया / सब बहुओं, मन्त्रियों, राजानों ने भी सूर्यवती रानी को नमस्कार किया। माता ने सारा वृतान्त सुनाकर छोटे भाई को श्रीचन्द्र की गोद में दिया, गोद में लेकर उसके प्रसन्नवदन चेहरे को . देखकर श्रीचन्द्र ने उसका नाम एकांगवीस रखा। बाद में सब जगह / समाचार लिख भेजे जिससे अनेक राजा श्रीचन्द्र की सेवा में भेट नाओं, कन्यांत्रों को लेकर उपस्थित हुये। सब जगह आनन्द मंगल की व. नियां होने लगी। कुछ ही समय बाद पद्मिनी, चन्द्रकला, वामांग, वरचन्द्र, सुधीर, धनंजय; विशाल सैन्य से युक्त तथा सर्व समृद्धि सहित वहां आ पहूँचे : जिससे चारों ओर ज्यादा खुशियां छा गई P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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