Book Title: Vardhaman Tap Mahima Yane Shrichand Kevali Charitram Part 02
Author(s): Siddharshi Gani
Publisher: Sthanakvasi Jain Karyalay

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Page 116
________________ *11410 लगी है, इसलिये तू जल्दी पा / 'जो भूख सर्व रूप को नाश करने वाली है, स्मृति को हरने वाली, पांच इन्द्रियों को आकर्षित में करने वाली है, कान और गाल को दीन करने वाली है, वैराग्य को उत्पन्न करने वाली है सम्बन्धियों को छुड़ाने वाली है, परदेश पर्यटन कराने वाली है, पंच. भूतों का दमन करने वाली, चारित्र का नाश करने वाली और प्राणों का भी जिस क्षुधा से नाश हो जाता है वह भूख उत्पन्न हुई है / श्रीचन्द्र कहने लगे मेरी की हुई प्रतिज्ञा अभी तक निष्फल नहीं हुई जब मेरी प्रतिज्ञा पूर्ण होगी तभी मैं भोजन करूंगा / ऐसा कहकर श्रीचन्द्र तत्काल खड़े हो गये। गुणचन्द्र ने कहा हे देव ! साहस से ऐसे वचन न कहो चोर कब पकड़े जायेंगे ? श्रीचन्द्र राजाओं सहित पैदल चलते हुए वन क्रीड़ा करते हुए बाहर मठ में आये। वहां पर दूसरे अवधूतों के साथ उन तोनों को मुह में पान चबाये हुये देख श्रीचन्द्र मठ के बाहर बैठे और उन अवधूतों को अपने पास बुलाया। उन्होंने भाकर राजा को आशीर्वाद दिया और खडे हो गये / तब राजा ने पूछा, कि तुम में योगी कौन और भोगी कौन है ? हम योगी हैं और आप भोगी हैं / राजा बोले तब तुम्हारे मुख में यह तांबुल कैसा ? वह तीनों ही श्याम मुख वाले हो गये, दूसरे अवधूत नहीं तब श्रीचन्द्र की संज्ञा करते ही उन तीनों को चारों तरफ से घेर लिया नमो जिणांरण कहकर राजा ने उठकर मठ का निरीक्षण किया और बाद में पादेश दिया कि यहां बहुत से योगी और मुसाफिर आते P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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