Book Title: Vardhaman Tap Mahima Yane Shrichand Kevali Charitram Part 02
Author(s): Siddharshi Gani
Publisher: Sthanakvasi Jain Karyalay
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________________ मापकी तलवार बीज बो रही है इस प्रकार बड़े मनोहर ढंग से गुणगान करने लगा / उसे श्रीचन्द्र ने पांच लाख सोना मोहर भेंट की और दूसरों को सुन्दर वस्त्र आदि भेंट दिये / हर्ष को प्राप्त हुआ वीणारव सुवर्ण मोहरों को लेकर अपने उतारे पर पाया। .... उसी रात्रि में वह पांचलाख सोना मोहरें चोर चुरा कर ले गये / यह बात वीणारव ने राजा से कही / जितशत्रु राजा ने कहा, हे देव ! यहां तीन चोरों ने सारे शहर में उत्पात मचा रखा है पकड़ाई में नहीं पाते / श्रीचन्द्र राजा ने यह सुन वीणा रव को दस लाख सोना मोहरें और दान में दी, उनको लेकर वह अपने उतारे पर गया। रात्रि में 'अदृश्य होकर श्रीचन्द्र फिरते 2 तीन पुरुषों को अच्छी तरह देख लेते हैं / उनमें से दो को तो वह पहचानते हैं कि रत्नखुर और लोहखुर चोर हैं, यह तीसरा कौन है यह सोचने लगे / बाद में ये क्या करते हैं यह देखने * के लिये उनके पीछे हो गये। ___ उनमें मुख्य लोहखुर जो था उसने कहा चलो वीणारव को आज दस लाख मोहरें मिली हैं उन्हें ग्रहण करें। तीसरा जो व्रजजंव था उसने कहा, मैंने सुना है जो राजा यहां आया हुआ है उसक भंडार में सुवर्ण पुरुष है वह ग्रहण करते हैं / वह कहने लगा तुम्हारे पास अवस्वापिनी विद्या है मैं तुम्हार। भतीजा गंध से पहचानी हुई वस्तु याद रखता हूँ और तुम्हारा भाई गंध से धन को पहचान जाता है / लोहखुर ने कहा हे भद्र ! श्रीचन्द्र राजा धर्मनिष्ठ, न्यायी, पुण्यशाली है। जिस कारण कोई भी किसी प्रकार से उनकी कोई वस्तु नहीं ले सकता / Jun Gun Aaradhak Trust P.P. Ac. Gunratnasuri M.S.