Book Title: Vardhaman Tap Mahima Yane Shrichand Kevali Charitram Part 02
Author(s): Siddharshi Gani
Publisher: Sthanakvasi Jain Karyalay
View full book text
________________ ते 123 ताढ्य गिरि पर पहुँचे / वहां उन्होंने मणिभूषण नगर में प्रवेश या / अनेक बाजों के नाद से दिशायें गूज उठी श्रीचन्द्र मणिभूषण नगर के उद्यान में उतरे / वहां उद्यान की मनुष्यों से भरपूर देखते हैं / वरपुरुष ने विनती की कि हे देव ! इस उद्यान में श्री धर्मवोष सूरीश्वर जी विराजमान हैं। उनकी धर्मदेशना सुग्रीव प्रादि विद्याधर भी सुन रहे हैं / राजा भी वहां गये / तब गुरु महाराज तप धर्म पर उपदेश दे रहे थे / श्रीचन्द्र को आया हुआ जानकर उन्होंने विशेष तप के प्रभाव का वर्णन किया / - स्वशक्ति से किये हुये तप से, नीचकुल में जन्म नहीं होता रोम होते नहीं अज्ञानपना भी नहीं रहता दरिद्रता नाश को प्राप्त होती है किसी भी प्रकार का पराभव नहीं होता, पग 2 पर संपदायें प्राप्त होती हैं / इष्ट की प्राप्ति होती है / श्रीचन्द्र की तरह निश्चय की सब कल्याण कारी वस्तुयें मिलती हैं / श्रीचन्द्र की कथा विस्तार से कहकर, स्वयंज्ञानी गुरु ने कहा, हे राजन ! हे सुग्रीव ! वे ये श्रीचन्द्र राजा हैं, पिता प्रता सिंह और सूर्यवती माता, चन्द्रकला और गुणचन्द्र प्रादि हैं / विद्याधरों ने, प्रमोद से श्रीचन्द्र को नमस्कार करके उनकी प्रशंसा की। दुसरों ने भी नमस्कार किया / श्रीचन्द्र राजा ने विनती की कि हे प्रभु ! श्री जिनेश्वर देवों द्वारा वजित पूर्व भव में मैंने कौनसा पुण्य किया था / गुरु फरमाने लगे P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust