Book Title: Vardhaman Tap Mahima Yane Shrichand Kevali Charitram Part 02
Author(s): Siddharshi Gani
Publisher: Sthanakvasi Jain Karyalay

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Page 138
________________ सूचित पुत्र रत्न का जन्म हुआ / दादा ने उसका नाम पूर्ण चन्द्र रखा / सर्व देशों में जन्म महोत्सव मनाया गया। दुसरी रानियों के भी अनेक पुत्र जन्मे / श्रीचन्द्र पुत्रों सहित इन्द्र की तरह शोगते थे / महामल्ल राजा और शशिकला रानी के प्रेमकला पुत्री हुई उसके साथ ऐकांगवीर भाई को परणाया / कुटुम्ब के दिन हर्ष पूर्वक व्यतीत हो रहे थे / एक दिन उद्यानपाल ने पाकर सूचना दी कि नगर के उद्यान में मुनि समुदाय से युक्त पुण्य के पुन्ज श्री सुव्रताचार्य पधारे हैं / प्रतापसिंह आदि सब आनन्द को प्राप्त हुये। प्रतापसिंह राजा, श्रीचन्द्र राजा और दूसरे राजाओं और स्वप्रियाओं सहित मंत्रियों, लोगों आदि के साथ पाकर गुरुमहाराज को विधि पूर्वक नमस्कार करके उचित स्थान पर बैठे / धर्मलाभ युक्त गुरुमहाराज ने देशना शुरु की कि विश्व में श्री जिनेश्वर देवों ने साधुः और श्रावक़ दो प्रकार के धर्म कहे हैं / साधु धर्म के पांच महाव्रत, तीन गुप्ति और पांच समिति, श्रावक के 12 व्रत, देव पूजा अादि धर्म कहे हैं। श्री जिनेश्वर देव की पूजा से मन को शान्ति प्राप्त होती है मन की शांति से शुभ ध्यान उत्पन्न होता है, शुभ ध्यान से मोक्ष का अव्याबाध सुख प्राप्त होता है / द्रव्य स्तवना से उत्कृष्ट अच्युत देवलोक तक जा सकते हैं और भाव स्तवना अन्तर मुहू त में केवल ज्ञान प्राप्त कर मोक्ष प्राप्त होता है। श्री जिन मन्दिर जाने की मन से इच्छा करे तो एक उपवास का प.ल. उठने से बेले का फूल: प्रयाण के प्रारम्भ में तेले का फल, चलतः Jun Gun Aaradhak Trust P.P. Ac. Gunratnasuri M.S.

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