Book Title: Vardhaman Tap Mahima Yane Shrichand Kevali Charitram Part 02
Author(s): Siddharshi Gani
Publisher: Sthanakvasi Jain Karyalay

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Page 118
________________ अपराध क्षमा करें। जो लोहजंघ चोर था उसके तीन नूत्र वज्रखर लोहखुर और रत्नखुर अनुक्रम से कुंडल गिरि, तिलक गिरी महेन्द्र गिरी में रहते थे। पहले के पास ताले को खोलने की विद्या थी, वह पहले ही मृत्यु को प्राप्त हो गया। उसका पुत्र यह वज्रजंध है, इसे पिता ने अदृश्य होने की गोली थी लेकिन इसने वह खो दी / मैं लोहखुर हूं इस प्रकार कह कर वे कहने लगे, आप हमारे स्वामी हो / उनको उपदेश देकर उन्हें अपने पास बिठाया और उनके पास से जो विद्यायें थीं वह भी ग्रहण कर ली। वहां से राजा महेन्द्रपुर में गये / सोते, बैठते, उठते और चलते हर समय प्रत्येक कार्य करते समय राजा नमो जिणाणं कहते हैं / पारपर्वी तप करने लगे / अर्हत धर्म की आराधना करते राजा पक्के आस्तिक बन गये / गुफा में से धन निकलवा कर सुलोचना के साथ महोत्सव पूर्वक बड़े बाठ से पाणिग्रहण किया। श्री चन्द्र राजा ने गुणचन्द्र को, अपने 14 राजाओ को सेना सहित लाने के लिये रवाना किया / लक्ष्मण, सुधीराज, सुन्दर और बुद्धिसागर इन चार मंत्रियों को भक्ति से भेंटना देने के लिये प्रतापसिंह राजा के पास भेजा। उन्होंने कुशस्थल जाकर वधामणी दी कि, राजन् ! आप श्री के पुत्र श्रीचन्द्र राजा, माता, भाई प्रादि सहित महेन्द्रपुर में आये हैं, वहां से तिलकपुर और सिंहपुर होकर, अल्प समय में आप श्री के चरणों में नमस्कार करेंगे / इधर गुणचन्द्र ने आकर श्रीचन्द्र राजा से विनती को कि P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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