Book Title: Vardhaman Tap Mahima Yane Shrichand Kevali Charitram Part 02
Author(s): Siddharshi Gani
Publisher: Sthanakvasi Jain Karyalay

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Page 115
________________ * 113 310 इस लिये तेरा उद्यम व्यर्थ जायगा / ऐसा कहकर रज को लेकर वीणारष के उतारा की तरफ फूका / रक्षक और वीणारव आदि निद्राधीन हो गये / तब चोर अन्दर गये और गध द्वारा धन को प्राप्त कर नगर से बाहर निकले। उनके मर्म को जानने वाले श्रीचन्द्र ने भी उनका पीछा किया, उनके क गये हुये मठ में आकर पीछे के भाग में धन रखकर, शिला से गुफा को बन्दकर, अवदूत का वेश पहन कर मठ में आकर सो गये / यह सब कुछ देख श्री चन्द्र भी राजमहल में जाकर सो गये / प्रातः होते ही यह बात सब जगह फैल गयी कि आज भी वीणारव का धन चोरों ने चुरा लिया है। गज्य सभा में सब राजा, मन्त्री प्रादि बैठे थे कुण्डल नरेश गुस्से से जिन शत्रु से कहने लगे कैसा तुम्हारा राज्य है जहां प्रजा को कोई सुख नहीं ? जहां चोर बार 2 चोरी कर जाते हैं / जितशत्रु राजा अवनत मुख हो गये / यह देख श्रीचन्द्र बोले जो वीर श्रेष्ठ ताम्बूल ग्रहण कर चोरों को पकड़ कर लाएगा उसे मैं अपने विवाह की पहेरामणी दे दूंगा। सभा में बैठे हुए लोगों ने कहा हे देव ! तांबूल लेने वाला कोई नहीं है आगे भी सब उपाय व्यथ गये हैं / सब सोच में पड़ गये, इस प्रकार दोपहर हो गई। उन सब बातों से अज्ञात सूर्यवती माता ने कहलाया कि देव पूजा का समय होगया है और भोजन का समय होगया है. सबको भूख P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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