Book Title: Vardhaman Tap Mahima Yane Shrichand Kevali Charitram Part 02
Author(s): Siddharshi Gani
Publisher: Sthanakvasi Jain Karyalay
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________________ *10310 - किसी एक व्यापारी ने इस दुष्ट को पहचान कर उसको बांध कर खूब मारा तब वह बोला कि में श्रीच द्र नहीं है बल्कि कुडलेश राजा का पुत्र हूं / अति दुखी हुये हमें यह विवाह बड़ा विषम पड़ गया मन्त्री चिन्तातुर हो गये / इतने में अंगद आया, उसके पास, से आपके गुणों को सुना / उस दुख से दुखी हंसावली मना करने पर भी काष्ट भक्षण के लिये उत्सुक हुई है / जिसका मुख भी देखने योग्य नहीं ऐसे चन्द्रसेन को यहां लाया गया है / अहो? देखो उनका विश्वासघातीपन / अहो उसका छल-कपट,अहो उसका अदीर्घदापन, ग्रहो कुकृत्यपन अहो हमारा अज्ञान हमने पहले कुछ भी सोचा समझा नहीं / बहुत जल्दी की। - ' श्रीचन्द्र राजा ने कहा कि इसमें आपका दोष नहीं परन्तु यह तो कर्म राजा की योजना है / जीव ने पूर्व में अनेक प्रकार के कर्म बांधे हुये होते हैं, उसी प्रकार से बुद्धि उत्पन्न होनी है फिर वैसी भावना तथा वैसी योजना बनती है। जैसी भवितव्यता होती है। वैसे ही बनाव बनते हैं / दूसरों के दुख को न देख सकने वाले ऐसे श्रीचन्द्र ने उस राजा के पुत्र को छुड़ाया, पास में बैठाकर उसे कहने लगे तूने सत्कुल में जन्म लिया फिर इस प्रकार एक स्त्री के लिये ऐसा कपट कैसे किया। बाद में राजकुमारी से कहने लगे, हे भद्रे ! दुख क्यों करती है ? ऐसा अकार्य न कर / आत्म हत्या करके मनुष्य जन्म को क्यों गंवा रही हो? मन और वचन से स्वीकृत पति नहीं हो सकता, परन्तु जिसके साथ पाणिग्नहण होता है वही पति माना जाता है, ऐसी रीति P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust