Book Title: Vardhaman Tap Mahima Yane Shrichand Kevali Charitram Part 02
Author(s): Siddharshi Gani
Publisher: Sthanakvasi Jain Karyalay
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________________ #1009 साधना शुरु की है उन्हें चार महिने हो गये हैं और दो महिने बाकी हैं। हमारे भाग्य से आप आए हैं तो अब आप इनसे पाणिग्रहण करो।। चन्द्र के. जैसी कान्ति वाली और यश वाली कन्याओं के साथ पाणिग्रहण किया। प्राग्रह से भोजन आदि कराके महावेगादि ने पहेरामणी देकर पूछा हे राजा ! आप अकेले कैसे ? उन्होंने यथायोग्य चरित्र कह सुनाया। रत्नवेगा ने जब तक मणिचूड़ रत्नध्वज पावे तब तक भाप यहां सुख से रहो। अापके रहने से भविष्य में हमारा हित होगा। श्रीचन्द्र ने कहा हे माता ! मुझे बहुत कार्य है, जिससे मैं विलम्ब नहीं कर सकता कनकपुर नगर मुझे * तत्काल पहुँचना है। विद्याधरों की विद्या सिद्ध करके आने में दो महिने की देर है कुशस्थल मार लोग आ जाएं प्रापका मिलाप हुअा सो. बहुत अच्छा रहा / . . . _ विद्याधरी ने कहा मदनसुन्दरी का. मुझे विरह न हो इतना स्वीकार करो। मुझे इसके साथ स्नेह है। श्रीचन्द्र ने कहा माता ! विवाह आदि आपके स्वाधीन है आपके राज्य मिलने पर ही विवाह होगा अभी नहीं / बड़ी कठिनता से आज्ञा लेकर रवाना होने लगते हैं तो रत्नचूला कहने लगी आपका विरह हमें दुखित करेगा, फिर मदनसुन्दरी भी यहां नहीं होगी तो हमारी गति क्या होगी? राजा ने स्नेह.से : मदनसुन्दरी को वहां, रहते के लिये कहा परन्तु वह वहां रहने में समर्थ नहीं। प्रिय से सती अव अलग कैसे रहे / बाद में अवधि का निश्चय कर जबरदस्ती वहां रहने का कहते हैं परन्तु मदनसुन्दरा P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust