Book Title: Vardhaman Tap Mahima Yane Shrichand Kevali Charitram Part 02
Author(s): Siddharshi Gani
Publisher: Sthanakvasi Jain Karyalay
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________________ जाता है / इसलिये तुम लोग ऐसा कोई उपाय करो जिससे पाप से मुक्ति हो / इस प्रकार कह कर दूसरे ग्राम में जाकर उन्होंने भोजन वि या / वहां से आगे चलते हुए दूसरे दिन वन में से जाते हुए दिन के अस्त होने के कुछ समय पहले मदन पुन्दरी थक गई। जिससे श्रीचन्द्र कहने लगे कि 'प्रिये ! गांव तो अभी दूर है, तुम्हारे पैर थक गये हैं इसलिये इस बड़ वृक्ष के नीचे ही यहां रात्रि र. तीत करते हैं, झोपड़ी की कोई जरुरत नहीं है। वहां ही संथारा करके दोनों लेट गये / प्रथम दो पहर व्यतीत होने पर रास्ते की थकावट के कारण मदनसुन्दरी को तो नींद प्रागई / श्रीचन्द्र जाग रहे थे, चारों तरफ निरीक्षण की दृष्टि से देख रहे थे इतने ही मे दक्षिण दिशा की तरफ रत्न जैसे तेज को देखकर कुतूहल वश वहां गये / वह तेज दौड़ता हुआ कभी दूर तथा कभी पास दिखाई देता था। इस प्रकार देखते हुए बहुत दूर निकल गये, इतने समय में तेज बन्द होता दिखाई दिया / ये इन्द्रजाल है ऐसा मानकर जिस रास्ते से गये थे उसी रास्ते से वापस आगये। प्राकर संथारे पर बैठ कर प्रिया से कहने लगे 'हे प्रियतमे ! कमल की श्रेणियों से सुगन्ध पाने लगी है / पृथ्वी पर कूकड़ बोलने लगे हैं ठंडक होने से अब तुम अच्छी तरह से चल सकोगी, रात्रि व्यतीत होने पर है इसलिये उठो। प्रिया ने कोई जवाब नहीं दिया कुछ क्षण ठहर कर फिर बोले कि 'हिरनियें घास खाने के लिये जा रही हैं, तेजस्वी सूर्य उदयाचल के शिखर को स्पर्श करने की तैयारी में हैं, है P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust