Book Title: Vardhaman Tap Mahima Yane Shrichand Kevali Charitram Part 02
Author(s): Siddharshi Gani
Publisher: Sthanakvasi Jain Karyalay
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________________ -ॐ 57 हुआ और कहने ल IT 'अरे दुष्ट ! मुझे शल्य वाले शव में उतारता है ? उसका फल तुझे अभी चखाता हूँ। ऐसा कहकर योगी को उठा कर अग्नि कुण्ड में होम दिया / श्रीचन्द्र मना करते रहे / __ योगी सुवर्ण पुरुष होगया / सुवर्ण पुरुष को कहीं दबाकर प्रभात में वंदरी के पास जाकर उसे अंजन से मदनसुन्दरी बनाकर उसे सारा हाल कह सुनाया। ये सुनकर आश्चर्य से प्रिया बोली 'हे नाथ ! सुवर्ण पुरुष का क्या प्रभाव है और उससे क्या होता है ? श्रीचन्द्र ने कहा कि सुवर्ण पुरुष की विधि से पूजा कर उसके चार अंगों को ग्रहण करके वस्त्र से ढक देने से प्रभात में वह सुवर्ण पुरुष फिर से अखंड अगों वाला हो जाता है। इस प्रकार हमेशा करने से वह मनुष्य उसके प्रताप से दाता, भोक्ता और लक्ष्मीवान बनता है।' परन्तु सुवरणं पुरुष पर मेरा मन नहीं है कारण कि अन्याय से उत्पन्न हुआ धन होने से, हिंसा से बने होने से, प्रथम व्रत के खंडन से इसका भोग करना दयालु आत्माओं को योग्य नहीं है / इस प्रकार बातें करते हुए दोनों प्रागे के लिये रवाना हुए। इतने में गुणविभ्रम राजा क्रीड़ा के लिये वहां पाया उसने तालाब की पाल पर दोनों को देखा / जितने समय में आम्न वृक्ष की छाया में बैठने को होता है उतने ही समय में परदेश से आया हुना भाट बोला, 'परस्त्री सहोदर, अनाथ की लक्ष्मी के सामने दृष्टि भी नहीं रखने वाले, अथियों के लिये कामधेनु * ऐसे श्रीचन्द्र जय को प्राप्त हों। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust