Book Title: Vardhaman Tap Mahima Yane Shrichand Kevali Charitram Part 02
Author(s): Siddharshi Gani
Publisher: Sthanakvasi Jain Karyalay
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________________ . * 44 310 हैं। हाथ और पैर के तलुवे, तालव, नेत्रों के कोने, जीभ, नख और होठ ये सात लाल अच्छे हैं / ललाट, छाती और मुख ये तीन चौडे अच्छे हैं / नाभि स्वर और सत्व ये तीन गहरे अच्छे हैं / आंख की की की और बाल ये दोनों काले शुभ माने गये हैं। इस प्रकार बत्तीस लक्षणों से प्राप युक्त हैं यह निश्चित है। 'मुख को आधा शरीर कहा गया है अथवा मुख सारा शरीर भी कहलाता है। मुख में नाक श्रेष्ठ है, उससे श्रेष्ठ चक्षु हैं, उनसे कान्ति श्रेष्ठ है. उससे श्रेष्ठ स्नेह है, उससे भी श्रेष्ठ स्वर है और उनसे श्रेष्ठ सत्व है / सत्व में सब वस्तुयें रही हुयी हैं / ' चन्द्रहास खड्ग किसी साधारण हाथ में नहीं होता। आप मेरे प्राण हैं। मैंने तो आपको ही वरण किया है, मेरे जीवन आप हो / स्वामी आप अकेले हो / प्रभात होते ही वह दुष्ट आयेगा उससे पहले ही हम कहीं निकल चलें जिससे वह हमें देख नहीं सके / फिर आज दोपहर को इस लग्न सामग्री से हे प्रभु ! गांधर्व विवाह से आप मुझे स्वीकार करो। - श्रीचन्द्र ने कहा 'हे भीरु ! तू सुख से यहां रह / डरो नहीं। वह पायेगा तब मैं उसे देख लूगा वह किस तरह का है / परन्तु यहां दोपहर के समय का पता कैसे चलेगा?' मदनसुन्दरी ने कहा 'हे देव ! इस गुफा के नीचे विशाल बड़ का वृक्ष है, उसके नजदीक एक खोखल के छोटे द्वार में से दिन और रात्रि का मध्य भाग दिखाई देता है। उसके बाद प्रातःकाल में मदनसुन्दरी सहित श्रीचन्द्र ने पारणा किया / मध्यान्ह समय में शुभ लग्न में दोनों ने गांधर्व विधि से विवाह किया। मदनसुन्दरी ने कहा हे स्वामिन ! वह विद्याधर क्यों नहीं Jun Gun Aaradhak Trust P.P. Ac. Gunratnasuri M.S.