Book Title: Vardhaman Tap Mahima Yane Shrichand Kevali Charitram Part 02
Author(s): Siddharshi Gani
Publisher: Sthanakvasi Jain Karyalay
View full book text
________________ { - ... . . : *:23 * 'जितशत्रु राजा ने उसे खुश होकर बहुत इनाम देना चाहा परन्तु वीणारव' ने कहा कि मेरे हाथ श्रीचन्द्र राजा के दान से बंध गये हैं, जिससे अब मैं दान नहीं ले सकता।' उसके जाने के बाद रतिरानी की पुत्री तिलकमंजरी का जिस प्रकार राधावेध हुआ था ये लोग उसी प्रकार से नाटक कर रहे हैं। ... ... ... '.. पिंगल भाट ने कहा 'लौकिक मिथ्यात्व दो प्रकार के हैं, देवगत और गुरुगत / लोकोत्तर मिथ्यात्व भी देव और गुरु दो प्रकार का है। इस प्रकार चारों प्रकार के मिथ्यात्व का जिसने भी सुव्रत मुनि के मधुर वचनों को सुनकर त्याग किया ऐसे श्रीचन्द्र * जय को प्राप्त हो / . नाटक देखकर कनकवती हर्ष को प्राप्त हुई। श्री चन्द्र पर मोहित हुई राजपुत्री ने धायमाता से कहा कि यह श्रीचन्द्र की आकृति चित्त को हरने वाली है तो वे साक्षात कैसे अद्भुत महिमा वाले होंगे I इससे, श्रीचन्द्र ही मैरे. पति. हों। उसकी तीन सखियें मत्री की पुत्री प्रेमवती, सार्थवाह की पुत्री धनवती, सेठ पुत्री हेम श्री ने भी श्रीचन्द्रः को ही अपना पति धारण कर लिया। घायभाता ने सारा हाल राजा से निवेदित किया जिससे राजा ने मंत्री को कुशस्थल भेजा है। . . i * पृथ्वी के इन्द्र श्रीचन्द्र ने इन सब बातों को सुनकर सोचा कि मेरे यहां रहने से मुझे यहां के लोग पहचान जायेंगे इस कारण अब मैं नगर को देखते हुए 'शीनं ही आगे के लिये रवाना हो जाऊं। ऐसा विचार कर नगर को देखते हुए वे बहुत दूर निकल गये / / मागे जाकर यक्ष के मंदिर में एक पुरुष को चिंतातुर बैठा P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust