________________ वशाली की महत्ता तत्रेदमुच्यते पीतास्या, पीतरथा, पीतरश्मि-प्रत्योदमुष्णीशा। पीता च पंचककुदा पीता वस्त्रा अलंकारा // और एक दल आया-सारी नीली चीजों से सजधज कर नीलास्या, नीलरथा, नीलरश्मि-प्रत्योदमुष्णीशा / नीला च पंचककुदा नीला वस्त्रा अलंकारा // इस तरीके के समारोह से स्वागत किये जाने पर भगवान बुद्ध वैशाली नगर में पदार्पण करते हैं और महामारी शान्त हो जाती है / नगर में प्रवेश करके भगवान् बुद्ध ने बौद्ध साहित्य के सुप्रसिद्ध 'रतनसुत्त' का मुक्तकण्ठ से उच्चारण किया। इस वाणी को सुन कर समस्त जनसमुदाय बौद्धधर्म को मान गया और इस सिलसिले में लिच्छवि खानदान के गोशृङ्गी ने अपना मशहूर 'शालवन' बौद्धसंघ को मेंट किया। बौद्धधर्म के इतिहास की एक और खास घटना वैशाली नगर में हुई थी। वह थी स्त्रियों को संघ में प्रवेश करने की अनुमति और "भिक्षुणी-संघ' की स्थापना / इसके पहले जब बुद्धदेव राजगृह ‘बटवन' की बैठक में थे, तब उनकी घातृमाता गोतमी ने गृहस्थ-आश्रम छोड़कर संघ में प्रवेश करने की इजाजत मांगी थी। परन्तु उस समय बुद्धदेव ने माता की उस प्रार्थना को ठुकरा दिया था। इसके बाद बुद्धदेव वैशाली चले आये। मगर गोतमी अपनी माँग को लेकर फिर उपस्थित हुई। केशों को मुड़ा कर, भगवा वस्त्र पहन कर, बहुत-सी महिलाओं को साथ लेकर, राजगृह से पैदल चल कर, गर्द से ढके हुए मलिन और फूले हुए पैर के साथ, सूखा मुंह लेकर, आंखों में आंसू को भरे हुए, वह वैशाली के महावन की कूटागारशाला के द्वार पर आ खड़ी हुई / वहाँ उसे बुद्धदेव के प्रधान शिष्य आनन्द मिले / गोतमी ने आनन्द से कहा कि बुद्धदेव से हमारी प्रार्थना और मांग मंजूर करा दीजिए। आनन्द की' सिफारिश पर बुद्धदेव ने अनुमति दे दी; मगर आठ कठिन शर्तों का पालन करने के लिए आदेश किया। गोतमी आनन्दपूर्वक इन सारे आदेशों को मंजूर करते हुए बोली-"हे आनन्द ! जैसे थोड़ी उम्र के युवक-युवती अपने को सुसज्जित करने के लिए सर्वदा तत्पर रहते हैं और स्नान करके उठते हो, दोनों हाथों में कमल, चमेली और 'अतिमुत्त' फूलों की मालाओं को उल्लास और खुशी से लेकर सिर पर अलंकार की रचना करते हैं; मैं उसी प्रेरणा, उत्साह और खुशी के साथ बुद्ध भगवान् की इन आठ शर्तों को मंजूर करती हूं। मेरे जीवन में इन शर्तों की कभी भी अवहेलना नहीं होगी।" . इस तरीके से वैशाली नगर में भिक्षुणी-संघ की स्थापना हुई / इस अवसर पर बुद्ध भगवान ने भविष्यवाणी की थी—"हे आनन्द ! अगर नारी / जाति को गृहस्थाश्रम त्याग करके संन्यास-आश्रम में प्रवेश करने की आज्ञा न दी जाती, तो