________________ इस वैशाली के आंगन में 301 सुना, वहीं पर पुदेव ने किया कमी या आप निवास / महारण्य की पुण्य-कुटी में था उनका सुन्दर आवास // यही सुन्दरी आम्रवारिका तज कर सारे भोग-विलास, आयी बी श्रद्धा समेत उपदेच महंग को उनके पास // विकसी पी वह मृदुल मन्जरी पहीं आन के कानन में / मत कह क्या क्या हुआ यहाँ इस वैशाली के आंगन में // सुना, यहीं उत्पन्न हुआ था किसी समय वह राजकुमार, त्याग दिये थे जिसने जग के भोग-विलास, साज-शृङ्गार, जिसके निर्मल जैन धर्म का देश-देश में हुआ प्रचार, तीर्थकर जिस महावीर के यश अब भी गाता संसार / है पवित्रता भरी हुई इस विमल भूमि के कण-कण में / मंत कह, क्या क्या हुआ यहाँ इस वैशाली के आंगन में // है उस प्रियदर्शी अशोक का स्तम्भ आज भी गड़ा हुआ / उस अतीव गौरव का है यह चिह्न आज भी खड़ा हुआ // सुप्त हो गये सभा, जिन्हें वा पा करके यह बड़ा हुआ। राजनगर राजा विशाल का आज शून्य है पड़ा हुआ। मत कह, क्या क्या हुआ यहां इस वैशाली के आंगन में //