________________ 404 Homage to Vaisali सदियों से विस्मृत-उपेक्षित आर्य सभ्यता और संस्कृति के अजस्र स्रोत इसकी पावन मिट्री में, कण-कण में, स्तूपों, टीलों और गढ़ की दीवारों, उसकी इंटों में भारत का गौरवशाली अतीत हमें पुकार रहा है। यहीं बुद्ध और महावीर के उपदेश लिच्छवि नर-नारियों ने सुने, यही वैशाली की नगरवधू आम्रपाली की सुन्दरता और कला-कुशलता पर लिच्छवि युवजन भावविमुग्ध हुए, और यहीं वही नगरवधू सब कुछ त्याग भिक्षुणी बन संध की शरण गयी। यहीं बौद्ध, जैन और हिन्दू देव-प्रतिमाओं का निर्माण हुआ। यहां क्या कुछ महान् अभिनन्दनीय नहीं हुआ ? रामायण काल से कर्णाट वंशीय राजाओं तक की तीरभुक्ति (उत्तर बिहार) की शाश्वत जीवन गाथा पूरे ओज और तेज से सहस्र धाराओं में कभी यहीं फूटी थी, उसकी अनुगूंज हमें वैशाली के कण-कण में आज भी सुनाई पड़ती है। ___ वैशाली के ध्वंसावशेष से पुरातत्त्व की जो दुर्लभ सामग्री प्राप्त हुई, उससे उसके लुप्त गौरव और महान् इतिहास का पता तो चलता ही है; पर उससे भी बड़ी बात जो हमारा ध्यान आकर्षित करती है, वह है वैशाली की सनातन जीवनदृष्टि / वैशाली एक नगरी नहीं, उदात्त मानवीय जीवन-मूल्य का प्रतीक है, एक जीवन-दर्शन है, जिस गणराज्य में शासित और शासक में कोई भेद नहीं था, सब समतामूलक जीवन आदर्श के उपासक थे, जिनके रक्त में आर्य जाति का उदात्त आदर्श सदियों पूर्व से प्रवाहित होता आ रहा था, जो सात अपरिहानीय धर्म-नियमों से बंधे थे, जहाँ बौद्ध, जैन और हिन्दू धर्म सहिष्णुता के साथ फूले-फले, जहाँ अध्यात्म-चेतना परस्पर मानवीय सम्बन्धों के विकास की समन्वयात्मक संस्कृति की साधना के लिए समर्पित थी, ऊंच-नीच का कोई भेद-भाव नहीं था। वैशाली के भग्नावशेष और उसकी खुदाई से प्राप्त दुर्लभ पुरातात्त्विक सामग्री उसी सत्य सनातन मानवीय दृष्टि के पुनरुद्भावन का आह्वान करती है। क्या उस आह्वान को हम सुन पाते हैं ?