Book Title: Vaishali Abhinandan Granth
Author(s): Yogendra Mishra
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa

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Page 510
________________ वैशाली के लिच्छवि-गणराज्य का पुनरुत्थान 465 (जातिबहिष्कृत)। अतएव, व्रात्यों को हीन दृष्टि से देखा जाता था। मनु ने 'वात्य' की परिभाषा (10.20) भी बता दी है और उपनयन संस्कार के लिए आयु (2.38-39) भी निर्धारित कर दी है। जैसा कि हमें अन्य सूत्रों से भी ज्ञात है, 'मनुस्मृति' की रचना के समय तक लिच्छवि बदले नहीं थे और अपनी पुरानी परम्परा (मुख्यत: बौद्ध एवं जैन धर्मों का पालन, गणतंत्र का निर्वाह, पड़ोसी गणतंत्रवादी मल्लों से सहयोग) पर अडिग थे, जिस कारण कट्टर ब्राह्मणवादी ग्रंथ में वे 'वात्य' करार दिये गये। 4. कुशीनगर में भगवान् बुद्ध का परिनिर्वाण होने पर उनके शरीरावशेष पानेवालों की जो सबसे पुरानी सूची 'दीघनिकाय' के एक महत्त्वपूर्ण अंग 'महापरिनिब्बानसुत्त' में उपलब्ध है, उसमें मिथिला के विदेहों का नाम नहीं है। पर 'डिक्शनरी आंद पालि प्रॉपर नेम्स' के लेखक डाक्टर जी० पी० मलालसेकर का कथन (भाग 2, पृष्ठ 635, शब्द 'मिथिला') है कि 'खुद्दकनिकाय' के एक अंग 'बुद्धवंस' (28.11) के लेखानुसार "बुद्ध की मृत्यु के बाद मिथिला के विदेहों ने उनके अवशेषों के एक भाग पर दावा किया और उन्हें ( = अवशेषों को) प्राप्त किया"। हमें स्मरण रखना है कि प्रथमतः 'बुद्धवंस' को बौद्धों का एक वर्ग, जो दीघभाणक (= 'दीघनिकाय' के उद्घोषक) के नाम से जाना जाता है, 'त्रिपिटक' का अंग मानने से इन्कार करता है; द्वितीयतः 'मधुरत्थविलासिनी' ( = सं० मधुरार्थविलासिनी) नामक 'बुद्धवंस' पर लिखी गयी प्राचीन टीका का लेखक उरगपुर-निवासी थेर बुद्धदत्त, मगध के प्रसिद्ध त्रिपिटकभाष्यकार बुद्धघोष का समकालीन होने के कारण, पांचवीं सदी ईसवी के पूर्वार्ध का ठहरता है। इस प्रकार, 'महापरिनिब्बानसुत्त' के सामने 'बुद्धवंस' की प्रामाणिकता संदिग्ध एवं अमान्य हो जाती है। मेरी यह स्थापना सही हो, तो यह अनुमान करना आसान होगा कि मिथिला के विदेहों का नाम उस सूची में पीछे से जोड़ा गया है। और यदि उपर्युक्त अनुमान तर्कसंगत है, तो यह भी मानना पड़ेगा कि जिस समय विदेहों का नाम जोड़ा गया, उस समय वे गणाधीन थे, न कि एकाधीन या राजाधीन (बुद्ध के युग में विदेह राजाधीन थे : एतदर्थ देखिए पुराण, 'ललितविस्तर' और 'गिलगिट मॅनक्रिप्ट्स', 1. मगध का राजा अजातशत्रु, वैशाली के लिच्छवि, कपिलवास्तु के शाक्य, अल्लकप्प के बुलि, रामग्राम के कोलिय, वेठदीप का एक ब्राह्मण, पावा के .. मल्ल, कुशीनगर के मल्ल, द्रोण ब्राह्मण और पिप्पलिवन के मोरिय / 2. संभवतः, इसीलिए हवाई विश्वविद्यालय के डाक्टर जे० पी० शर्मा तक ने, जो ईसा-पूर्व छठी-पांचवीं सदियों के विदेहों को गणतांत्रिक मानते हैं ('रिपब्लिक्स इन ऐंशिएंट इंडिया सर्का 1500 बी० सी०-५०० बी० सी०', लाय्डेन, 1968, पृष्ठ 136-158) और इस कारण जिनको तत्संबंधी प्रमाणों की तलाश भी थी, 'बुद्धवंस' के इस प्रमाण (बुद्धशरीरसमसुविभाजन के अवसर पर मिथिला के विदेहों द्वारा अपने भाग की प्राप्ति) पर कोई ध्यान नहीं दिया है। 59

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