Book Title: Vaishali Abhinandan Granth
Author(s): Yogendra Mishra
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology and Ahimsa

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Page 515
________________ 470 Homage to Vaisali 1955 तक और पुनः 1962-63 में वे बिहार में कार्यरत रहे। वे जहां भी रहे, बराबर वैशाली-संबंधी विकास से जुड़े रहे। 1973 तक (थाईलैंड जाने के पहले तक) वे वैशालीसंघ के प्रधान सचिव (जनरल सेक्रेटरी) बने रहे / वैशाली-महोत्सव प्रतिवर्ष वैशाली के ध्वंसावशेषों पर मनाया जाने लगा। - यह महोत्सव अब भी होता है, जो वैशाली की दिव्य विभूति चौबीसवें तीर्थकर भगवान् महावीर के जन्मदिन (चत सुदी 13) को मनाया जाता है। प्रात:काल बौना पोखर (बसाढ़) के जैन मन्दिर पर तीर्थकर भगवान् की पूजा होती है। उसके बाद बसुकुण्ड स्थित प्राकृत विद्यापीठ में उसकी अधिष्ठात्री परिषद् (जनरल कौसिल) की वार्षिक सभा होती है, जिसकी अध्यक्षता बिहार के राज्यपाल करते हैं। फिर उन्हींकी अध्यक्षता में विद्यापीठ के तत्त्वावधान में पूर्वघोषित विषय पर विद्वत्-संगोष्ठी होती है। अपराह्न में अभिषेक-पुष्करिणी (बसाढ़) से मंगलकलश में उसका पवित्र जल लेकर शोभायात्रा प्रारंभ होती है, जो पंडाल तक पहुंचती है। वहाँ मंगलकलश स्थापित होने के बाद भाषणों और मनोरंजन का कार्यक्रम चलता है। प्रदर्शनी एवं प्रतियोगिताओं में सफलतापूर्वक भाग लेनेवालों को अगले दिन पुरस्कृत किया जाता है। ठेठ देहाती क्षेत्र में विविध प्रकार के लोगों के बीच वैशाली-महोत्सव का प्रतिवर्ष आयोजन निश्चित रूप में एक सफलता है, जो नवजागरण का प्रतीक है। किन्तु इसके अतिरिक्त भी वैशाली-संघ की कई उपलब्धियाँ हैं : “पुरातत्त्व-संबंधी खुदाइयों का सिलसिला पुनः चालू हुआ; एक स्थानीय पुरातत्त्व संग्रहालय की स्थापना हुई (जो भारत में पहला ग्रामीण संग्रहालय था); जैन समुदाय द्वारा वैशाली के भगवान् महावीर का जन्मस्थान होने की मान्यता प्राप्त की गयी; प्राकृत और जैन संस्कृति के अध्ययन के लिए एक प्रतिष्ठान स्थापित किया गया; स्थानीय जनता के लिए विद्यालयों इत्यादि की स्थापना हुई; अनेक अनुसंधानपूर्ण और लोकप्रिय प्रकाशन प्रस्तुत किये गये; लोकगीतों तथा लोकसंस्कृति की अन्य अभिव्यंजनाओं को प्रोत्साहन दिया गया; तीर्थयात्रियों तथा अन्य आगंतुकों के लिए सुविधाओं का आयोजन हुआ; तथा स्थानीय कृषकों एवं शिल्पियों इत्यादि के आर्थिक विकास के लिए विविध कार्यक्रम चलाये गये।" स्थल-संकोच के कारण हम संक्षिप्त रूप में ही इनपर प्रकाश डालेंगे। उत्खनन के लिए प्रार्थित होने पर जब भारत सरकार के पुरातत्त्व विभाग ने अपनी आर्थिक कठिनाई जतलायी, तब वैशाली-संघ ने बिहार, कलकत्ता, बम्बई आदि क्षेत्रों से दान प्राप्त करके सात हजार रुपये की रकम प्रस्तुत कर दी और तब पुरातत्त्व विभाग के वरिष्ठ अधिकारी और विद्वान् श्रीयुत कृष्णदेव ने 1950 में नियोजित रूप से उत्खनन किया। इस उत्खनन का ब्योरेवार वर्णन वैशाली-संघ प्रकाशित कर चुका है। बिहार 1. जगदीशचन्द्र माथुर और योगेन्द्र मिश्र (सम्पादक), 'वैशाली-दिग्दर्शन', - वैशाली संघ, 1981, पृष्ठ 88 /

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