________________ 468 Homage to Vaisali तथा विक्षुब्ध हो नेपाल चले गये थे। तीसरे, हिमालय की तलहटी की परिवर्तित परिस्थिति में वैशाली के गणतंत्रीय लिच्छवि राजतंत्रीय बन गये। वहाँ वे सदियों तक सफलतापूर्वक टिके। वैशाली के इतिहास का यह युग, जिसमें लिच्छवि-गणराज्य का दूसरा काल (125 ई०पू० से 319 ईसवी) आता है, राजनीतिक प्रभुता-विस्तार, आर्थिक समृद्धि, धार्मिक जागरण और कलात्मक क्रियाशीलता ('आर्टिस्टिक ऐक्टिविटी') का युग था, जिसमें लिच्छवि-संघ समस्त बिहार में सर्वाधिक प्रधान राज्य था। अपने व्यापार की संवृद्धि के लिए लिच्छवियों ने इस युग में पंचनदीसंगम (आधुनिक चेचर ग्रामसमूह) नामक नदीपत्तन ('रिवर पोर्ट') का विकास किया, जिस (नाम) का उल्लेख (नदी एवं उसके पार बसे अन्य नगर सहित) तीसरी-चौथी सदी के श्वेताम्बर आचार्य संघदासगणी कृत प्राकृत कथाग्रन्थ 'वसुदेवहिण्डी' में उपलब्ध है। कथा है कि कृष्ण के पिता वसुदेव राजगृह से भ्रमण करते हुए (हीड़ते हाँड़ते हुए : लोकप्रयोग) यहाँ पहुंचे थे। लिच्छवि-गणराज्य की समाप्ति के 87 वर्ष बाद यहाँ आये प्रसिद्ध चीनी बौद्ध यात्री फाहियान ने इस स्थान का नाम the confiuence of the live rivers बताया है, जो पंचनदीसंगम का शाब्दिक अनुवाद है। प्राचीन भारतीय गणराज्यों में वाणिज्य-व्यापार पर बहुत बल दिया जाता था। अबतक लिच्छवियों का अपेक्षाकृत विस्तृत इतिहास इन छह व्यक्तियों द्वारा लिखा गया है :-विमलाचरण लाहा, 'क्षत्रिय क्लैन्स इन बुद्धिस्ट इण्डिया' (कलकत्ता, 1922), 'ट्राइब्स इन. ऐंशिएन्ट इण्डिया' (पूना, 1943), 'होमेज टु बैशाली' (वैशाली, 1948) (तीनों में लम्बे लेख है); योगेन्द्र मिश्र, 'ऐन अली हिस्ट्री ऑव् वैशाली' (दिल्ली, 1962); जे. पी. शर्मा, 'रिपब्लिक्स इन ऐंशिएन्ट इण्डिया सर्का 1500 बी० सी०-५०० बी० सी०' (लाय्डेन, 1968); उपेन्द्र महारथी, 'वैशाली के लिच्छवि' (पटना, 1969); हितनारायण झा, 'द लिच्छविज़' (वाराणसी, 1970); शैलेन्द्र श्रीवास्तव, 'लिच्छवियों का उत्थान एवं पतन (600 ई० पू०-७८१ ईसवी), (नयी दिल्ली, 1984) / नेपाल के लिच्छवि राजाओं के अभिलेखों का संग्रह धनवज्र वजाचार्य द्वारा 'लिच्छविकालका अभिलेख' (काठमांडू, 1973) नामक पुस्तक में हुआ है।