________________ 472 Homage to Vaisa पर हर वर्ष भगवान महावीर के जन्मदिवस पर जैन समुदाय धार्मिक अनुष्ठान करता आ रहा है। इसने बसाढ़ में मुख्य सड़क और 'बस-स्टैण्ड' के समीप एक जैन-विहार (जैन धर्मशाला) का निर्माण भी करवाया है, जो दुमंजिला है। 1950 के पुरातात्त्विक उत्खनन के लिए धन एकत्र करने में जैन महानुभावों से विशेष सहायता मिली थी। वैशाली प्राकृत विद्यापीठ के निर्माण में भी जैन समाज ने उदारता एवं सहृदयता का परिचय दिया है। जैन समाज के लगभग सभी समुदायों ने अब वैशाली के महावीर-जन्मभूमि होने के ऐतिहासिक तथ्य को मान लिया है। वैशाली क्षेत्र में बसुकुण्ड नामक प्राम में वहां के निवासियों ने दो एकड़ जमीन इस उद्देश्य से स्थानान्तरित कर दी है कि वहाँ पर भगवान् महावीर का स्मारक बनाया जाए / यह वही स्थली है, जिसे परम्परा से वहां के निवासी पवित्र मानते रहे हैं और जहां कभी हल जोता नहीं गया। इस स्थान पर 23 अप्रैल 1956 को भारत के राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद के हाथों महावीर-स्मारक की नींव डाली गयी। इस जगह स्मारक के लिए योजना तैयार की जा रही है। सन् 1952 में वैशाली-संघ ने महावीर की जन्मभूमि वैशाली में प्राकृत और जैन संस्कृति के विशेष अध्ययन के लिए एक प्रतिष्ठान स्थापित करने की योजना बनायी और उसे मुद्रित रूप में जैन समाज एवं बिहार सरकार के सामने रखा। कई स्थानों पर वार्ताओं और विचार-विनिमय के उपरान्त अन्ततः जैन समाज के संस्कृतिप्रेमी तथा. लोक-प्रसिद्ध श्रेष्ठी श्री शान्तिप्रसाद जैन ने अपने समाज की ओर से छह लाख रुपये का भवन प्रतिष्ठान के लिए तैयार करा देने की घोषणा की बशर्ते कि बिहार सरकार विद्यापीठ के चलाने का भार अपने ऊपर ले ले। बिहार सरकार ने यह भार स्वीकार कर लिया। दिसम्बर 1955 से विद्यापीठ मुजफ्फरपुर में किराये के मकान में चलने लगा। मकान तैयार होने पर मार्च 1965 में विद्यापीठ मुजफ्फरपुर से वैशाली में अपने नये भवन में स्थापित हो गया। संस्थान के पुस्तकालय में जैन साहित्य का अच्छा संग्रह है। यहाँ एम० ए० की पढ़ाई होती है तथा पी-एच० डी० और डी० लिट्० उपाधियों के लिए अनुसन्धान किया जाता है / संस्थान ने अनेक अनुसन्धान-ग्रन्थों का प्रकाशन किया है / सन् 1963 से संस्थान प्रायः प्रति वर्ष महावीर जयन्ती के अवसर पर विद्वद्गोष्ठी का आयोजन करता रहा है / वैशाली क्षेत्र में पहले शिक्षा का अभाव था। नवजागरण का प्रारम्भ होने पर इस क्षेत्र में कई तरह के विद्यालयों की स्थापना हुई। बसाढ़ में एक उच्चस्तरीय विद्यालय स्थापित किया गया, जिसका नाम महावीर तीर्थङ्कर हाई स्कूल रखा गया। हाई स्कूल के लिए संघ ने स्थानीय जनता से चार एकड़ जमीन प्राप्त की, जिसे हाई स्कूल की समिति को भवन निर्माण के लिए सौप दिया गया। कई शिशुशालाएं, बालपाठशालाएं, महिला समाज शिक्षा केन्द्र, शिल्प कला केन्द्र, पुस्तकालय और विज्ञान-मन्दिर स्थापित हुए। अनेक वर्षों तक तुर्की-वैशाली सघन शिक्षा विकास योजना ने भी इस क्षेत्र में शिक्षा और ज्ञान के प्रसार में यथेष्ट योगदान किया। एक समय की उदास वैशाली में अब वैशाली-संघ एवं वैशाली क्षेत्र के उत्साही लोगों के प्रयासों के फलस्वरूप ज्ञान का प्रकाश तेजी से फैलने लगा।