________________ वंशाली के लिच्छवि-गणराज्य का पुनरुत्थान 463 इस पहलू पर मेरी दृष्टि पहली बार दिसम्बर १९७८-अगस्त 1979 में गयी, जब मैं अपनी पुस्तक 'हिस्ट्री ऑव् विदेह' (जानकी प्रकाशन, पटना, 1981) के अन्त के कतिपय अध्यायों के लिए पाण्डुलिपि तैयार कर रहा था। मगर, उस समय भी मैं चूंकि विदेह में डूबा हुआ था, इसलिए वैशाली पर पूरा ध्यान न दे सका। इधर (विशेषकर अक्तूबर 1980 से) मुझे वैशाली-सम्बन्धी विस्तृत सामग्री देखने एवं उसपर मनन करने का अवसर मिला है। राजा मागध अजातशत्रु वैदेहीपुत्र हर्यककुल का था। इस वंश के बाद शिशुनागवंश, नन्दवंश और मौर्यवंश आये। मौयों के बाद शुंगवंश आया, जिसने 112 अथवा 120 वर्षों तक राज किया / प्रथम चार राजा (पुष्यमित्र, अग्निमित्र, वसुज्येष्ठ/सुज्येष्ठ, वसुमित्र) बलशाली और भानुवत् प्रतापी थे, जिन्होंने 61 वर्षों तक (188-127 ई० पू०) राज किया / वसुमित्र पुष्यमित्र का पौत्र और अग्निमित्र का पुत्र था। उसने अपने पितामह के राजत्वकाल में विदेशी यवनों (बैक्ट्रियन ग्रीकों) को सिन्धु नदी के तट पर पराजित किया था। वीरता की यह कहानी कालिदास के संस्कृत नाटक 'मालविकाग्निमित्र' में वणित है। यह सोचना सहज होमा कि वसुमित्र की मृत्यु (127 ई०पू०) के बाद मगध का शंग साम्राज्य क्षत-विक्षत होने लगा और इसकी कमजोरी का लाभ उठाकर पड़ोस के लिच्छवि स्वतंत्र हो गये / अतएव, हमने अनुमान से लिच्छवियों की स्वाधीनता का समय मोटे तौर पर 125 ई० पू० रखा है। चौथी सदी ईसवी के प्रारम्भ में गुप्तवंश (319-550 ई०) वैशाली और विदेह को मिलाकर तीरभुक्ति नामक प्रदेश (भुक्ति) का निर्माण करता है। अतएव, यह मानना युक्तिसंगत होगा कि नवशक्तिप्राप्त लिच्छवियों ने मगध से स्वतंत्रता प्राप्त कर लेने के तुरत बाद ही (करीब 120 ई० पू० में) विदेह को भी मगध से छीन लिया। फलतः, विदेह अधिक-से-अधिक समय तक वैशाली के अधीन रहा / मगध के साथ यह बात नहीं हुई। वह करीब एक सदी तक ही वैशाली के अधीन रहा। जब मगध का काण्ववंश समाप्त हो जाता है, तब बिहार (या उत्तर भारत) का इतिहास अंधकार-युग में प्रवेश कर गया समझा जाता है। वस्तुतः, ऐसी बात नहीं है। सचाई यह है कि मगध पर वैशाली का अधिकार हो जाता है (करीब 20 ई. पू. से 80 ईसवी तक)। कुषाण-सम्राट् कनिष्क ने जब पाटलिपुत्र पर चढ़ाई की, तब उसने वहाँ के 'राजा' (नप) को हरा दिया और वहां की राजसभा से प्रसिद्ध बौद्ध कवि और नाटककार अश्वघोष को एवं वैशाली से वहां रखे बुद्ध के भिक्षापात्र को अपनी राजधानी पुरुषपुर (आधुनिक पेशाबर, पाकिस्तान) ले गया। मगध और वैशाली पर कुषाण-वंश के अधिकार की अवधि साठ वर्ष (करीब ५०ई०-१४०ई०) मानी जा सकती है। विदेह पर कुषाण-अधिकार का कोई प्रमाण न मिलने के कारण यह मानना उचित होगा कि मगध और वैशाली पर कुषाण-अधिकार के समय विदेह कुषाणों के अधिकार से मुक्त था और पूर्ववत् वैशाली के लिच्छवियों के अधिकार में था, जो (लिच्छवि) केवल इस अवधि