________________ स पमा SO MORM MODE वैशाली के लिच्छवि-गणराज्य का पुनरुत्थान डॉ. योगेन्द्र मिश्र, एम० ए०, पी-एच० डी०, साहित्यरत्न ___इतिहासरत्न (मानद), विद्यावाचस्पति (मानद) वैशाली गणतंत्र की जननी है। यहां गणतंत्र की स्थापना उस समय हो चुकी थी, जिस समय यूनान में इसका स्थापित होना बाकी था। अतएव हमें यह मानने में किसी तरह का संकोच या हीलाहवाला नहीं होना चाहिए कि वैशाली गणतंत्र की माता है / वैशाली गणतंत्र के दो महायुग हैं -(1) करीब 725 ई० पू० से लेकर 484 ई० पू० तक (वृजिसंघ) और (2) करीब 125 ई. पू. से (बीच में माये कुषाण-युग को छोड़कर) 319 ईसवी तक (लिच्छविसंघ)। इनमें प्रथम महायुग तो यथेष्ट रूप से प्रख्यात है, जिसे वृजिसंघ या लिच्छविगण कहते थे और जिसकी प्रशंसा भगवान् बुद्ध (567-487 ई०पू०) ने भी की थी। इसकी कथा कहनेवाली सामग्री भी पर्याप्त है। गौतम बुद्ध ने अपने धर्मसंघ का संघटन वैशाली के वृजिसंघ, कपिलवास्तु के शाक्यसंघ, कुशीनगर एवं पावा के मल्लसंघों आदि के आधार पर किया था। वृजिसंघ का अन्त मगध के राजा अजातशत्रु (495-463 ई० पू०) ने किया और वैशाली पर मगध के बढ़ते साम्राज्य का अधिकार हो गया / यह अधिकार साढ़े तीन सौ वर्षों से भी अधिक समय तक बना रहा। वैशाली के गणतंत्र का द्वितीय महायुग अपेक्षाकृत अल्पज्ञात है। इसके अस्तित्व का आभास तो लोगों को डाक्टर काशी प्रसाद जायसवाल (1881-1937), डाक्टर अनन्त सदाशिव अल्तेकर (1898-1959) प्रभृति विद्वानों से मिला था, जिनकी स्थापना थी कि विदेशी कुषाणों के भारत से खदेड़ने में लिच्छवि, यौधेय आदि गणतंत्रात्मक जातियों की अपूर्व भूमिका रही। फिर भी, संभवतः समय एवं सामग्री के अभाव में लिच्छवि इतिहास के इस द्वितीय समुज्ज्वल युग पर अबतक ध्यान नहीं दिया जा सका है। इसलिए विचारणीय है कि स्वतंत्र वैशाली के इस युग की प्रशासन-प्रणाली क्या थी और उसे गणतंत्रात्मक मानने के क्या तर्क हैं।