________________ वैशाली की गरिमा I - - गुप्त साम्राज्य का सूर्य अस्त होते-होते लिच्छवि समाज भी अप्रभावित.न रहा / अपने प्राचीन गौरव को अस्त होते देख पराक्रमी लिच्छवियों का एक दल नेपाल चला गया, जहाँ उसने 879 ईसवी तक राज्य किया। छठी सदी में वैशाली का पतन हो गया / खुदाई में प्राप्त ऐतिहासिक सामग्री से इस बात की पुष्टि होती है / छठी सदी में वैशाली की वह गणतांत्रिक पुण्यभूमि पूरी तरह वीरान हो गयी। इस तथ्य की पुष्टि हर्षवर्धन के शासनकाल (606-647 ई०) में आए प्रसिद्ध चीनी बौद्ध यात्री ह्वेनसांग (629-645 ई.) के यात्रा-विवरणों से भी होती है / वह जब वैशाली आया तब वैशाली ध्वस्तप्राय थी। कई सौ संघाराम उजाड़ खड़े थे / तव निर्ग्रन्थों के अनुयायी काफी संख्या में उसे दिखाई दिए थे। . सातवीं सदी के उपरांत वैशाली कभी तिब्बती, कभी उत्तरकालीन गुप्तों, पालवंशी बौद्ध राजाओं, कर्णाट वंशीय राजाओं के शासनाधीन रही / लिच्छवियों का एक कुल पहले ही नेपाल में राजतंत्र स्थापित कर चुका था / वैशाली के कुछ साहसी उपनिवेशक अराकान (बर्मा) तक पहुंच गये और वहाँ बसाए ग्राम का नाम 'वेथाली' (वेशाली, वैशाली) रखा / यहां वैशाली वंश के राजाओं का प्रभुत्व 878 से 1048 ई. तक रहा / बर्मा के बौद्ध राजा अनिरुद्ध (1044-1066 ई.) ने वैशाली की राजकुमारी से विवाह किया था, जिससे उसे क्या सित्था (1048-1112 ई०) नामक पुत्र उत्पन्न हुआ। उस काल में वैशाली और बर्मा में घनिष्ठ सम्बन्ध था। हिन्दुत्व के पराभव और अपमान के युग में वैशाली उजाड़ हो गई। बौद्धों का वहाँ से लगभग लोप हो चुका था, जैनी पश्चिम भारत की ओर चले गए / कर्णाट वंशीय अनेक राजाओं ने तिरहुत के शासक के रूप में संस्कृत साहित्य के उन्नयन में योग दिया। इन कर्णाट वंशीय राजाओं (1.97-1324 ई.) की राजधानी नेपाल की तराई में सिमरांवगढ़ थी। इन्होंने ब्राह्मण धर्म को प्रश्रय दिया। आश्चर्य नहीं कि इनके शासन काल में तीरभक्ति के विशाल क्षेत्र में बैष्णव और शैवधर्म का पुनरुत्थान हुआ। जहाँ-तहाँ भव्यमन्दिरों की रचना हुई और काले चिकने पत्थरों की तराशी हुई अनेक कलासमृद्ध देवप्रतिमाएं भी इसी काल में बनीं। यह भी संभव है कि पालयुगीन बौद्ध प्रतिमा-निर्माण की परंपरा और तीरभुक्ति में प्रचलित हिन्दू देवी-देवताओं की मूर्ति-निर्माण शैली परस्पर सामंजस्य की तलाश करती रही हो। इसी बीच तुर्को और अफगानों का आक्रमण हुआ और कर्णाट वंश के अन्तिम राजा हरिसिंहदेव दिल्ली के तुर्की सुल्तान गयासुद्दीन तुगलक (1320-25 ई.) के द्वारा पराजित हो गए। तब से तीरभुक्ति के साथ वैशाली भी दिल्ली सल्तनत के अधीन हो गयी / मुस्लिम शासन काल में वैशाली क्षेत्र में हाजीपुर और मुजफ्फरपुर जैसे शासन के नए केन्द्र उभरते गए। वैशाली सदियों की विस्मृति और उपेक्षा के कारण कुछ ढहे-ढहाए स्तूपों, टीलों का गढ़ और गाँव मात्र रह गयी थी। उसका वह पुरातन गौरव, बुद्ध और महावीर की पावन धर्मसाधना, आर्य संस्कृति की उदात्त चेतना सब कुछ काल के विकराल प्रवाह में विलीन हो गया। उन्नीसवीं-बीसवीं सदी में प्राच्य और पाश्चात्य पुराविदों की दृष्टि इसपर पड़ी।