________________ 399 वैशाली की गरिमा रहा। आधुनिक काल में प्राचीन भारत के इतिहास, धर्म और संस्कृति के पुनरन्वेषण के क्रम में वैशाली के भग्नावशेष में लिच्छवियों के गौरव के ज्ञान के साथ-साथ जैन-धर्म के सन्दर्भ में वैशाली की महत्ता का पुनर्मूल्यांकन हुआ है। आज तो वैशाली संघ के अनुष्ठान और सतत निष्ठा से जैनधर्म और विद्या का भारत-प्रसिद्ध केन्द्र वैशाली में चल रहा है। प्रतिवर्ष चैत्र शुक्ल त्रयोदशी को महावीर जयन्ती का महोत्सव वैशाली गणराज्य की महिमागान के रूप में मनाया जाता है। वहाँ लोकजीवन की संस्कृति, कला-चेतना और सौन्दर्य वृत्ति का अपूर्व पुनरुद्बोधन प्रस्तुत किया जाता है, जिसमें अभिनेताओं और दर्शक लोगों को समान साझेदारी इतने बड़े पैमाने पर होती है जो सारे भारत में शायद ही कहीं होती हो / . उस दिन लगता है मानो वैशाली का लुप्त गौरव जैसे पुनः लौट रहा हो। इस सांस्कृतिक . पुनर्जागरण में 'वैशाली संघ' की अपनी विशिष्ट भूमिका है। - महावीर वद्धमान की जन्मभूमि वैशाली अवश्य थी, परन्तु गौतम बुद्ध को भी यह वैशाली परम प्यारी थी। महाभिनिष्क्रमण के उपरांत ज्ञान के अमृत तत्त्व की तलाश में निरंजना नदी के तट पर जाने से पहले वे वैशाली आए और मंखलिपुत्त गोसाल एवं अन्य परिव्राजकों से ज्ञान की चर्चा की। छह वर्षों की कठोर साधना के उपरांत ज्ञान की अमृत ज्योति उनके अन्तःकरण में उदभासित हुई तो उसे सारे भारत में चारिका करते हुए उपदेशामृत का पान कराते। उस क्रम में उन्होंने दो वर्ष वैशाली में बिताये और अपनी पैतालीस वर्षों की धर्मयात्राओं में वैशाली की कई यात्राएं उन्होंने की। बौद्धधर्म की अनेक प्रभावी घटनाएं गौतम बुद्ध के जीवन काल में यहाँ घटीं। शास्ता अपने धर्म-संघ में स्त्री को शरण देने के कट्टर विरोधी थे। कपिलवस्तु में मातृतुल्या क्षीरदायिका अपनी मौसी महाप्रजावती गौतमी के बौद्धधर्म में प्रवेश को उन्होंने अस्वीकृत कर दिया था, पर वैशाली की पावन भूमि पर गौतमी के दृढ़ आग्रह और आनन्द के अटल अनुरोध को वे न टाल सके। महाप्रजावती को कठिन शर्तों पर धर्म की शरण में लेकर वैशाली में ही उन्होंने भिक्षुणी संघ की स्थापना की। ___ महावीर वर्द्धमान और गौतम बुद्ध दोनों ही समकालीन धर्म-प्रवर्तक थे। दोनों के बीच अपने धर्म-सिद्धान्तों को लेकर प्रत्यक्ष रूप से संघर्ष हुआ हो, इसका स्पष्ट विवरण तो नहीं मिलता पर उनके शिष्यों के माध्यम से उन दोनों के वैचारिक संघर्ष और टकराव की खूब अच्छी झलक मिलती है। इस दृष्टि से "सीह-सुत्त" की ओर हमारा ध्यान विशेष रूप से आकर्षित होता है। सिंह सेनापति वैशाली के थे, वैशाली गणराज्य के अत्यन्त प्रभावशाली गणाधिकारी, महावीर वर्द्धमान के परमप्रिय शिष्य और तत्कालीन वैशाली गणराज्य के जैनियों के प्रमुख स्तम्भ और प्रवक्ता ! लिच्छवियों के संस्थागार में गौतम बुद्ध के गुणों का बखान सुन कर सिंह सेनापति के अन्तर में उनके दर्शन की उत्कण्ठा जगी। महावीर वर्द्धमान ने जब बार-बार अनुरोध करने पर भी अनुमति प्रदान नहीं की, तो सिंह सेनापति शास्ता के पास गए। बौद्ध धर्म की “अक्रियावादिता" पर उन्होंने (सिंह सेनापति ने) गौतम बुद्ध से प्रश्न और प्रतिप्रश्न किये। पूर्ण समाधान हो जाने पर सिंह सेनापति शास्ता के