________________ वैशाली, जैनधर्म और जैनदर्शन 161 निकटवर्ती स्थानों को देखने में मेरी जिस प्रकार सहायता की, उसकी सराहना किये बिना नहीं रह सकता / मुझे दुःख है कि, विस्मरण हो जाने से मैं उनके नाम का उल्लेख यहाँ नहीं कर पा रहा हूँ। - वैशाली के निकट भगवान महावीर का जन्मस्थान निश्चित करने के कारण मुझे . रूढ़िवादियों के विरोध का भी सामना करना पड़ा। पर, मैं सदा नये-नये प्रमाणों के संग्रह में लगा रहा और सन् 1946 ई० के प्रथम संस्करण के बाद, सन् 1957 ई० में गुजराती में 'वैशाली' प्रकाशित कराई और फिर उसी वर्ष और परिवद्धित रूप में 'वैशाली' हिन्दी का द्वितीय संस्करण प्रकाशित कराया। और, अब तो अपनी पुस्तक 'तीर्थकर महावीर' में भगवान् के जीवन से सम्बद्ध यथासम्भव प्रायः सभी स्थानों पर निर्णय करने का प्रयास किया है। श्रीजगदीशचन्द्र माथुर की सांस्कृतिक अभिरुचि, साहित्य-प्रेम और निष्ठा के फलस्वरूप ही इस वैशाली-संघ की स्थापना हुई और उन्हीं सोपान-त्रय के फलस्वरूप वैशालीसंघ और माथुर साहब दोनों ही साथ-साथ उन्नति के पथ पर अग्रसर हैं। इतिहास ने अभी तक इस बात पर परदा डाल रखा है कि, भगवान् के जन्मस्थानसम्बन्धी ये स्थापना-तीथं कब और किन परिस्थितियों में स्थापित हुए / पर, शास्त्रों से बड़े स्पष्ट शब्दों में यह सिद्ध है कि, भगवान् महावीर के जन्मस्थान की जो जगहें आज मानी जाती हैं, वे मूल स्थान नहीं हैं। आवश्यकचूर्णि में उल्लेख है कि, वैशाली से वाणिज्यग्राम जाते हुए भगवान् को गण्डकी नदी पार करनी पड़ी थी। वैशाली, वाणिज्यग्राम और कुण्डग्राम तीनों निकट-निकट थे, यह बात शास्त्रसिद्ध है / फिर, भगवान का जन्मस्थान अंग-मगध में भला कैसे माना जा सकता है / कलिकाल सर्वज्ञ हेमचन्द्राचार्य ने भी वैशाली और वाणिज्यग्राम की स्थिति इसी रूप में 'त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र' में बताई है / अतः स्पष्ट है कि, विक्रम की १२वीं शताब्दी तक किसी प्रकार का भ्रम नहीं था। यहाँ एक बात और कह दूँ कि, कुछ लोग वैशाली-नगर को ही भगवान का जन्मस्थान मानते हैं और कुछ कुण्डपुर तथा वाणिज्यग्राम को वैशाली का मुहल्ला-मात्र मानते हैं / एक दूसरा भ्रामक विचार एक अंग्रेज महोदय ने यह फैलाया कि, कोल्लाग भगवान् का जन्मस्थान था। पर, ये तीनों ही विचार सर्वथा भ्रामक हैं। कोल्लाग भगवान् महावीर का जन्मस्थान था, ऐसा उल्लेख तो किसी ग्रन्थ में नहीं मिलता। कुण्डग्राम तथा वाणिज्यग्राम वैशाली के मुहल्ले नहीं थे। वे दोनों स्वतन्त्र नगर थे। हम ऊपर कह आये हैं कि, वैशाली और वाणिज्यग्राम के बीच में गण्डकी नदी थी। फिर, वह मुहल्ला कैसे हो सकता है। इस भ्रम का एक कारण यह है कि, लोग यह नहीं समझ पाते कि, वैशाली नगर का नाम तो था ही; पर यह देश भी 'वैशाली' के नाम से सम्बोधित होता था / 'महावस्तु' में पाठ आता है 'वैशालिकानां लिच्छविकानां वचनेन।' महावस्तु का यह पाठ इस भ्रम के निवारण के लिए पर्याप्त है / इसी वैशाली-गण में स्थित कुण्डपुर में भगवान का जन्म हुआ, इसी भूमि में उनका बचपन बीता, यौवन बीता, अपने घर वालों से अनुमति लेकर यहीं उन्होंने दीक्षा ग्रहण की, 21