________________ 267 संस्कृत-महाकाव्यों और पुराणों में वैशली नृग, थर्याति, दिट, धृष्ट, वरूपक, नरिष्यन्त, पृषध्र, नभग और कवि / भागवत पुराण के अनुसार विशाल इक्वाकु का पुत्र नहीं था, वरन् उसके भाई दिष्ट के वंश में उत्पन्न हुआ था। उसकी माता का नाम उक्त पुराण के अनुसार भी अलम्बुषा ही था / श्रीमद्भागवत के अनुसार विद्याल के पूर्वजों और वंशजों की सूची यों है (1) दिष्ट, (2) मलन्दन, (3) वत्सप्रीति, (4) प्रांशु, (5) प्रमति, (6) खनित्र, (7) चाक्षुष, (8) विविंशति, (9) रम्म, (10) खनिनेत्र, (11) करन्धम, (12) अवीक्षित, (13) मरुत्त, (14) दम, (15) राज्यवर्धन, (16) सुधृति, (17) नर, (18) बन्धुमान्, (19) वेगवान्, (20) बन्धु, (23) तृणविन्दु (उसकी पत्नी बलम्बुषा), (22) विशाल (इसीने वैशाली बसाई)', (23) हेमचन्द्र, (24) धूम्राक्ष, (25) संयम, (26) कृशास्व (उसका भाई देवज या सहदेव), (27) सोमदत्त, (28) सुमति, (29) जनमेजय / / श्रीमद्भागवत पुराण में जो वंशावली दी गई है, उसके अनुसार इक्ष्वाकु के भाई दिष्ट से लेकर रामचन्द्र के समकालीन सुमति तक 27 पीढ़ियां बीत चुकी थी। किन्तु वाल्मीकीय रामायण की वंशावली के अनुसार इक्ष्वाकु से लेकर सुमति तक केवल दस ही पीढ़ियों बीती थीं। अब इन दोनों वंशावलियों में कौन-सी ठीक है, इसका निर्णय करना आवश्यक है / सबसे पहली बात तो यह है कि वाल्मीकीय रामायण को छोड़ कर और कहीं विशाल का इक्ष्वाकु का पुत्र होना वणित नहीं है। भागवत के अनुसार इक्ष्वाकु के नौ पुत्र थे जिनमें से विकुक्षि (शशाद), निमि और दण्डक ये तीन ही प्रसिद्ध थे। विकुक्षि अयोध्या का, निमि मिथिला का और दण्डक दण्डकारण्य का राजा था। यदि विशाला का निर्माता विशाल भी इक्ष्वाकु का ही पुत्र होता, तो वह भी प्रमुख माना जाता और अन्य 6 पुत्रों के साथ उसकी गणना न करके इक्ष्वाकु के इन तीन पुत्रों के साथ ही उसकी भी गणना होती / अतः श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार विशाल का इक्ष्वाकु का पुत्र नहीं होना ही सत्य प्रतीत होता है। यह इक्ष्वाकु के वंश में है अवश्य; किन्तु वह उसका औरस सन्तान नहीं। अतः उसको दिष्ट का वंशज मानना ही उचित प्रतीत होता है। वाल्मीकीय रामायण की वंशावली पूरी-पूरी वंशावली नहीं है। इस बात का प्रमाण रामचन्द्र के विवाह के समय में वशिष्ठ द्वारा महाराज दशरथ के पूर्वजों का वर्णन है। उसके अनुसार इक्ष्वाकु से लेकर रामचन्द्र तक 35 पीढ़ियां बीत चुकी थी। तब इक्ष्वाकु से या उसके भाई दिष्ट से लेकर सुमति तक केवल दश ही पीढ़ियां कैसे बीती ? वाल्मीकि रामायण 1. विशालो वंशकृदाजा वैशालीम् निर्ममे पुरीम् / . (भा० पुराण, नवम स्कंध 102, श्लो० 33) 2. एते वैशालभूपालाः तृणबिन्दोर्यशोषरां / (भा० पु० नवम स्कंध, अध्याय 2, लो० 36) 3. देखिए-वा० रामायण. सर्ग 71, श्लो० 19 से 45 तक।