________________ 270 Homage to Vaisali भी किसी-किसी स्त्री के सम्बन्ध में आते हैं; न कि नवी विशेन के विषय में। पर डाक्टर अविनाशचन्द्रदास के मतानुसार इन नदियों का अर्थात् गंगा-यमुना का विस्तार और विकास ऋग्वेदिक युग तक नहीं हो पाया था। वे बोड़ी ही दूर तक बहने वाली छोटी नदियां कीं। ये हिमालय के समतल क्षेत्रों में अवतीर्ण होकर पूर्व समुद्र में निपतित हुई थीं। इसी से इन दोनों नदियों का गौरव-गान ऋग्वेद में नहीं है। सम्भव है कि उस समय तक गंगा ऋषिकेश अथवा हरिद्वार तथा यमुना कुरु-पाञ्चाल के निकट पूर्व समुद्र में जो पास में ही अवस्थित था,-मिलती हों। ऋग्वेद में, एक-दो स्थानों पर, सरयू नदी का भी नाम आता है। कुछेक लोगों का मत है कि यह सरयू नदी कोशल-राज्य के पास से बहनेवाली सरयू है। पर बात ऐसी नहीं हो सकती / ऋग्वेद-कालीन भूगोल के जानने वालों को यह बात मलीभांति विदित है कि उस समय तक कोशल-राज्य का निर्माण नहीं हुआ था और वैदिक आर्यगण पंजाब से बहुत पूरब की ओर नहीं बढ़ पाये थे। विद्वानों का मत है कि यह सरयू अफगानिस्तान की एक नदी थी। किसी-किसी के मत से तक्षशिला के पास से बहने वाली किसी नदी का नाम सरयू है। जेन्द-अवस्ता में इस नदी का नाम 'हरोयू' कहा गया है। पारसी लोग स' की जगह प्रायः 'ह' का उच्चारण किया करते हैं। सुदूर पश्चिमोत्तर प्रदेश के पास बहनेवाली 'हरीरुद' नदी को बहुतेरे विद्वान् अब 'अवस्ता' की 'हरोयू' तथा ऋग्वेद की 'सरयू नदी समझने लगे हैं / बहुत सम्भव है, यह विचार ठीक हो / ____ उपर्युक्त बातों से यह मलीभांति प्रकट हो जाता है कि ऋग्वैदिक-काल में आयंगण पंजाब से बहुत दूर नहीं हटे थे; पंजाब के पूरब बहनेवाली नदियां गंगा-यमुना आदि का यशोविस्तार तबतक प्रायः न के बराबर था; तथा कुरु-पाञ्चाल, वत्स, कोशल, काशी और विदेह आदि जनपदों या देशों का निर्माण भी तब तक नहीं हो पाया था। ये सारे देश ऋग्वेदोक्त पूर्व समुद्र के गर्भ में अवस्थित थे। ज्यों-ज्यों पूर्व समुद्र सुदूर पूर्व की ओर हटता गया, त्यों-यों नयी मिट्टी निकलती गयी। इन जमीनों पर ज्यों-ज्यों नये-नये पेड़-पौधे उगते और पनपते गये त्यों-त्यों आयंगण पहले तो गोचारण के सिलसिले में इन जंगलों का उपयोग और उपभोग करने लगे, पश्चात् उनकी जनसंख्या ज्यों-ज्यों बढ़ती गयी, उन जंगलों को वे काट-काट कर, नयी-नयी बस्तियाँ-नये-नये देश बसाते गये। ____ अब हम ब्राह्मण-युग में प्रवेश करते हैं। आर्यों की पूरब की और बढ़ने की सूचना पहले 'शतपथ ब्राह्मण' में हमें स्पष्ट रूप से मिलती है। 'शतपथ ब्राह्मण' (1 / 4 / 10-19) में लिखा है कि सरस्वती के तट पर विदेह मिपि नाम का राजा था। गोतम रहूगण उसका पुरोहित था। ये दोनों अग्नि वैश्वानर का अनुसरण करते हुए 'सदानीरा' नदी के तट तक पहुंचे। अग्नि वहाँ रुक गया और राजा विदेह मिथि 'सदानीरा' के उस पार यानी पूर्व पार जाकर रहने लगा। तब से उस देश का नाम विदेह अथवा मिथिला पड़ा / समयान्तर में यह विदेह देश दो भागों में विभक हो गका। एक पूर्व विदेह तथा दूसरा पश्चिम विदेह / पश्चिम विदेह को लोग वैशाली भी कहते हैं जैसा कि आगे चल कर मालूम होगा।