________________ प्रजातन्त्री वैशाली 279, जितनी शान्ति-कला / लिच्छषियों की शिक्षा और प्रतिमा एकाङ्गी न थी। राजनीतिक उन्नति उतने ही गहरे विचार का विषय थी जितनी जनता की आर्थिक उन्नति / डा. जायसवाल के शब्दों में, अधिकारों के विभाग एवं न्याय-प्रणाली से यही सूचित होता है कि उस समय तक लोगों ने गणों का कार्य-संचालन करने का बहुत अधिक अनुभव प्राप्त कर लिया था और उनमें इस कार्य के लिए बहुत उच्च कोटि की समझदारी आ गयी थी। शासन-प्रणाली की सफलता की सबसे अच्छी कसोटी यह है कि उसके द्वारा राज्य चिरस्थायी हो। भारत की प्रजातन्त्र या गण-शासन-प्रणाली-उदाहरणार्थ लिच्छविगण की शासन-प्रणाली राज्यों को चिरस्थायी बनाने में बहुत अधिक सफल प्रमाणित हुई थी। लिच्छवि शिशुनाग एवं मौर्य साम्राज्यों के बाद भी बच रहे थे। उन्होंने गुप्त साम्राज्य के निर्माण में भी सहायता दी। उनके सम्बन्ध के लेख भी बहुत समय तक के मिलते हैं / इससे सिद्ध होता है कि उनका प्रजातन्त्र स्थायित्व की कसौटी पर पूरा उतरा था। 1. ग. बी० सी० लों का विचार है कि "बौखसंघ का संगठन करने में बुद्ध ने उत्तरपूर्वी भारत के, विशेष कर लिच्छवियों के राजनीतिक संघ को अपना आवर्श माना था" (चुनीलाल आनन्द के 'ऐन इण्ट्रोरपशन दुर हिस्ट्री ऑव गवर्नमेण्ट इन इण्डिया' पृ०७१ पर उद्धृत)। डा० काशीप्रसाद जायसवाल को भी यही राय है (हिन्दू-राज्य तन्त्र, पहला खण्ड, पृ०६८)। 2. बॉ० जायसवाल, हिन्दू-राज्य-तन्त्र, पहला खड, पृ० 286 /