________________ वैशाली की महिमा 159 / लिए ? अपने महान भविष्य के निर्माण के लिए, आगे वाली पीढ़ियों के लिए; इसमें त्याग की जरूरत है, इसमें संयम की जरूरत है, इसमें शिक्षा को जरूरत है। केवल बहकने को जरूरत नहीं है, भावुक होना ठीक है, लेकिन भावुक होना एक हद तक ही ठोक है, सोचविचार कर कदम उठाना प्राहिए। . .. वैशाली-महोत्सव का एक ही लक्ष्य हो सकता है-नवीन भारत का निर्माण और इस नवीन भारत के माध्यम से सारे संसार को वह महान् सन्देश देना, जिसका प्रतीक यह वैशाली है। यह जो खण्डहर है, बार-बार उद्घोष कर रहा है कि देखो, कभी मैंने बड़ी कीत्ति प्राप्त की थी। इन गुणों के कारण, हम दृढ़निश्चय थे, हममें हिम्मत थी, हम वृद्धों का सम्मान करते थे, हम ज्ञानी और गुणियों का समादर करते थे, हम अपनी महिलाओं का सम्मान करते थे, इसलिए बड़े हुए थे। आज तुम छोटे हो, गिर गये हो, तुम गुणी नहीं हो, साहसो नहीं हो, अपने निश्चय पर अटल नहीं रह सकते, तुम्हें अपने वृद्धों का सम्मान करने नहीं आता, तुम्हें-देश विदेश के गुणियों का सम्मान करने नहीं आता, तुम्हें अपनी महिलाओं का आदर करना नहीं आता, महिलाओं के प्रति श्रद्धा और मधुर भाव नहीं है, जो हममें था। इन महान गुणों के कारण वैशाली एक दिन ऐसी थी, जिसकी चर्चा विदेशियों ने की है। शाहीजी ने बताया कि हमारी हिन्दू-परम्परा में लिच्छवियों का जिक्र नहीं है / लेकिन, हमारे मन में यह विचार कुछ दूसरे रूप में है, इसलिए इस बात को यहां नहीं कहना चाहता। हमारा अपना बिलकुल एक अजीब विचार है-मैं नहीं मानता कि क्षत्रिय कुण्ड ही बासुकुण्ड है, क्षत्रिय कुण्ड है, ब्राह्मणकुण्ड है, कई और कुण्ड हैं। मेरे मत से यह अष्टकुल की जो परम्परा है, भारत में, हिन्दू-परम्परा में जीवित है, इन लिच्छवियों की स्मृति में है, और उसका साहित्य हमारे यहां नहीं है। क्योंकि, बाद की शताब्दियों में साहित्य-संग्रह किया गया था। यह सही है कि लिच्छवि नाम से गणों की निन्दा की गई है। मनुजी ने तो यहाँतक कहा है कि गणिका का छुआ हुआ अन्न नहीं खाना चाहिए। इस प्रकार अश्रद्धा की अभिव्यक्ति की है। उसके और भी कई पहलू हैं, जिनके विस्तार में मैं नहीं जाना चाहता। लेकिन, इसमें कोई शक नहीं कि यह भूमि जहाँ हम लोग आज खड़े हैं, महान् वैशाली नगरी की ही भूमि है और यहां से हमें जो सन्देश और प्रेरणा मिल रही है, वह हमारे देश के निर्माण में सहायक सिद्ध होगी। uttam