________________ 238 Homage to Vaisali कि प्राचीन युग में वैशाली में राजतन्त्र की प्रधानता थी। वाल्मीकि रामायण में वर्णित है कि जब राम-लक्ष्मण के साथ विश्वामित्र ने यहां पदार्पण किया था, तब यहां के राजा सुमति ने उनका विशेष सत्कार किया था। जैनसूत्रों तथा बौद्धपिटकों में वैशाली प्रजातन्त्र की क्रीड़ास्थली के रूप में अंकित की गई है। भगवान् बुद्ध ने अपने अनेक चातुर्मास्य यहीं बिताये थे। इसमें चार प्रधान चैत्य थे-पूर्व में उदेन, दक्षिण में गोतमक, पश्चिम में सप्ताम्रक और उत्तर में बहुपुत्रक। अम्बपाली नामक गणिका जो धार्मिक श्रद्धा तथा वैराग्य के कारण बौद्धधर्म में विशेष प्रसिद्ध है-ठीक उसी प्रकार, जिस प्रकार वैष्णवधर्म में पिंगला–यहीं रहती थी। उसी का आम्रवन बुद्ध के उपदेश देने का प्रधान स्थान था। बुद्ध के समय लिच्छवि लोगों को यहाँ प्रजातन्त्र के रूप में हम शासन करते पाते हैं। इससे बहुत पहले हम यहाँ महावीर वर्धमान को जन्मते, शिक्षा ग्रहण करते तथा प्रव्रज्या लेते पाते हैं। वर्धमान के समय में भी यहाँ गणतन्त्र राज्य ही था। वैशाली के इतिहास में कोई महान् परिवर्तन अवश्य हुआ होगा जिससे वह विशाला तथा मिथिला दोनों राज्यों की राजधानी बन गई तथा उसका शासन राजतन्त्र से गणतन्त्र हो गया। इस परिवर्तन के कारणों की छानबीन करना इतिहास-प्रेमियों का कर्तव्य है। वैशाली में अनेक विभूतियां उत्पन्न हुई। परन्तु उनमें सबसे सुन्दर विभूति हैभगवान महावीर जिसकी प्रभा आज भी भारत को चमत्कृत कर रही है। लौकिक विभूतियाँ भूतलशायिनी बन गई, परन्तु यह दिव्य विभूति आज भी अमर है और आनेवाली अनेक शताब्दियों में अपनी शोमा का इसी प्रकार विस्तार करती रहेगी। बौद्धधर्म से जैनधर्म बहुत पुराना है। इसका संस्थापन महाराज ऋषभदेव ने किया था, जैनियों की यही मान्यता है / तेईसवें तीर्थकर पार्श्वनाथ वस्तुतः ऐतिहासिक पुरुष हैं। वे महावीर से लगभग दो सौ वर्ष पहले हुए थे। वे काशी के रहने वाले थे। महावीर ने उनके धर्म में संशोधन कर उसे नवीन रूप प्रदान किया। भारत का प्रत्येक प्रान्त जैनधर्म की विभूतियों से मण्डित है / ऐतिहासिक लोग पार्श्वनाथ को जैनधर्म का संस्थापक मानते हैं और वर्षमान महावीर को संशोधक / महावीर गौतमबुद्ध के समसामयिक थे; परन्तु बुद्ध के निर्वाण से पहले ही उनका अवसान हो गया था / इस प्रकार वैदिक धर्म से पृथक्षों के संस्थापकों में महावीर वर्धमान ही प्रथम माने जा सकते हैं और इनकी जन्मभूमि होने से वैशाली की पर्याप्त प्रतिष्ठा है। वैशाली का भौगोलिक वर्णन - वैशाली तथा उसके आसपास के प्रदेशों का प्रामाणिक वर्णन जैनसूत्रों में विशेष रूप से दिया हुआ है। इनकी विशद सूचना बौद्धग्रन्थों में भी उपलब्ध नहीं होती। इन प्रदेशों का संक्षिप्त वर्णन नीचे दिया जाता है१. तस्य पुत्रो महातेजाः सम्प्रत्येष पुरीमिमाम् / आवसत्यमरप्रत्यः सुमति म दुर्जयः॥१६ सुमतिस्तु महातेजा विश्वामित्रमुपागतम् / श्रुत्वा नरवरश्रेष्ठः प्रत्यगच्छन्महायशाः ॥१९-बालकाण्ड 47 सर्ग। 2. द्रष्टव्य बोधनिकाय-महापरिनिम्बाण-सुत्त(नं० 13)