________________ On अम्बपाली . डॉ० वासुदेवशरण अग्रवाल एम० ए०, एल-एल० बी०, पी-एच० डी०, डी० लिट० वैशाली की अम्बपाली गणिका बौद्ध साहित्य में विशेष आकर्षण रखती है। अपने अनुपम सौन्दर्य के कारण वह दिदिगन्त में विख्यात थी। उसके मांसपिण्डात्मक शरीर की परिचर्या प्राप्त करने के लिए वैशाली के लिच्छवि राजकुमार सदा लालायित रहते थे। जनपदकल्याणी अम्बपाली ने जीवन का जो मार्ग ग्रहण किया था, वह मांस की भूख को तृष्ठ करने के कारण चिरन्तन सत्य से दूर था। उस मार्ग में अपने अनुपम सौन्दर्य की विभूति को अर्पित करने पर भी अम्बपाली कदाचित् ही मृत्यु के सर्वाभिभावी विनाश से अपनी रक्षा कर पाती। जिस मार्ग से चल कर अनेक लिच्छवि राजकुमार काल के गाल में विलीन हो गये, वही अम्बपाली के लिए भी नियत था। निकृष्ट दुर्गन्धिपूर्ण मांस-लोलुपता के लिए स्वर्ग का सौरमपूर्ण वायु नितान्त दुर्लभ है। अन्धकार में दीपक बन कर प्रकाश फैलाने वाला जो चित्तसंकल्प है, वही सचमुच मूल्यवान् है। जिसके विचारतल को इस प्रकार का संकल्प एक बार छू देता है, वही मृत्यु से हट कर अमृत की ओर अग्रसर हो जाता है। विधाता ने जिस सौन्दर्य की प्रतिमा को इतनी सुघराई से गढ़ कर तैयार किया था, सौभाग्य से उसके उद्धार का पवित्र क्षण भी प्राप्त हो गया। बुद्ध रूपी पारस के स्पर्श से अम्बपाली की तामसी मूर्ति स्वर्ण की आभा से जगमगा उठी। बुद्ध के सम्पर्क से उसके जीवन का पाप भस्मीभूत हो गया और श्रद्धा के संचार से उसका हृदय शुद्ध बन गया-नितान्त कल्मषहीन, संयम और पवित्रता के भावों से युक्त / राजगृह से कुशीनगर को जाते हुए बुद्ध वैशाली में ठहरे। उनके आने का समाचार जान कर हृदय की अगाध श्रद्धा से भरी हुई अम्बपाली भगवान की अभ्यर्थना के लिए पहले