________________ प्राचीन वैशाली के आदर्श डाक्टर श्रीकृष्ण सिंह एम० ए०, बी० एल० (प्रधान मन्त्री, बिहार) आज जिस धरती पर खड़े होकर हम वैशाली की प्राचीन सभ्यता और संस्कृति का अभिनन्दन कर रहे हैं, वहाँ ढाई हजार साल पहले प्रजातन्त्र की तूती बोलती थी। यहाँ वज्जियों के प्रतिनिधि जमा होते थे और शासनकार्य करते थे। जानबूझ कर पश्चिमवालों ने हमारे प्राचीन इतिहास को इस तरह रखा है, जिसमें हमें मालूम पड़े कि हम बराबर निरंकुशतापूर्वक शासित होते आये हैं और हमारे यहाँ प्रजातन्त्र की कोई परम्परा नहीं है। पश्चिम देख ले और अपना अज्ञान दूर कर ले कि जिस समय उसके पूर्वपुरुष जंगलों में घूमते थे, उस समय प्राचीन भारत में प्रजातन्त्रवाद अपने पूरे गौरव के साथ फल-फूल रहा था। आज इस बात की बड़ी जरूरत है कि हमारा इतिहास फिर से लिखा जाय और उसमें से गलत बातों को हटा दिया जाय। हमें अपने देशवासियों को इस ढंग से शिक्षित करना है कि वे न केवल अपने देश का सिर ऊँचा करें, बल्कि विदेशों में भी अपने देश का गौरव बढ़ायें। आज हमारी स्वतन्त्रता के लिए स्कीम पर स्कीम पेश की जाती है और यह भी कहा जाता है कि भारत में 'डेमोक्रेसी' चल ही नहीं सकती। यह सिर्फ लोगों को छलने का प्रयत्न है। मगर पश्चिम का यह प्रयत्न कभी सफल होने का नहीं। हम जग गये हैं। और दूसरों के भुलावे में नहीं आ सकते / 1. तृतीय वैशाली-महोत्सव (14 अप्रैल, 1947) में सभापति के पद से दिये गये भाषण का एक महत्वपूर्ण अंश /