________________ वैशाली और दीर्घप्रज्ञ भगवान महावीर' डॉ० वासुदेव शरण अग्रवाल, काशी विश्वविद्यालय सबसे नमः, . वैशाली महोत्सव के पुण्य अवसर पर आमंत्रित होकर आना मेरे लिये आपके अनुग्रह का फल है। यह पवित्र राजधानी भारत के सांस्कृतिक और राजनैतिक इतिहास में चिरविश्रुत है। यहीं लिच्छबि गणराज्य ने मानव की व्यक्तित्व-गरिमा, समता और स्वतंत्रता के महत्त्वपूर्ण प्रयोग किए और इसी के समीप कुण्डग्राम में जन्म लेकर ज्ञातृवंशीय भगवान् महावीर ने मानव को चिरप्रतिष्ठा प्राप्त करानेवाले उस महान् बुद्धिपरायण एवं साधनाप्रधान धर्म का उपदेश दिया जो, कहा जाता है, देवों में भी निष्फल गया था। विक्रम संवत् से 470 वर्ष पूर्व महावीर का निर्वाण हुआ था। वे 72 वर्ष की आयु तक जीवित रहे। अतएव 542 विक्रम पूर्व में उनका जन्म हुआ। उस दिन चैत्र शुक्ल त्रयोदशी थी। वही भगवान् महावीर की जयन्ती तिथि है। यह तिथि मानव के लिये नवीन आस्था और संकल्पवान् व्रतों का सन्देश लाती है। सत्य, अहिंसा और ब्रह्मचर्य के प्रति नूतन निष्ठा की जयन्ती के रूप में इस तिथि का महत्त्व है / अदत्तादान-परित्याग और अपरिग्रह रूपी महाव्रतों को विजयपताका के रूप में यह जयन्ती तिथि बार-बार हमारे समक्ष आती रही है और प्रतिसंवत्सर में इसके मास्वर तेज का दर्शन हमें मिलता रहेगा। भगवान महावीर महान् आदर्श के प्रतीक हैं / महाव्रतों की अखण्ड साधना से उन्होंने जीवन का बुद्धिगम्य मार्ग निर्धारित किया और स्थूल जड शरीर से ऊपर उठकर माबों की शाश्वत विजय का नवीन मानदंड स्थापित किया। मन. वाणी और कर्म की साधना उच्च अनन्त जीवन के लिए कहाँ तक कोई प्राणी कर सकता है इसका उदाहरण तीर्थंकर महावीर का जीवन था। उस महान धर्म-समुद्र के मेघजल सुदीर्घ काल तक बरसते रहे हैं। आगे भी वह अमृत जल प्रत्येक के जीवन को सींच सके इसके लिये आवश्यक है कि हम उस आदर्भ को अपने जीवन में यथाशक्ति उतारने का प्रयत्न करें। 1. बारहवें वैशाली महोत्सव पर 23 अप्रैल 1956 को दिया गया भाषण /