________________ 114 Homage to siaVah में तीन बातें विशेष रूप से प्रकट हुई। एक आर्थिक समृद्धि, दूसरे नैतिक गुणों का विकास और तीसरे प्रशा या बुद्धि के आकस्मिक स्फोट द्वारा साहित्य और ज्ञान का परन उत्कर्ष / अनेक शिल्पों का ताना-बाना पूर्व से पश्चिम तक फैले हुए, जनपदों में छा गया था, जिन्हें उस समय की भाषा में जानपदी वृत्ति कहते थे। यास्क और पाणिनि ने उसका उल्लेख किया है और बौद्ध एवं जैन साहित्य में उन शिल्पों को लम्बी-लम्बी सूचियाँ भी पायी जाती हैं। समता और स्वतन्त्रता की भावना का परिपाक व्यक्ति के नैतिक गुणों में देखा जाता है। उस भावना की झलक बुद्ध और महावीर के उपदेशों में तथा महाभारत के नीति-प्रधान स्थलों में पाई जाती है। चरित्र की उच्चता का बह आदर्श अश्वपति कैकेय के इस वाक्य में अभिव्यक्त होता है __न मे स्तेनो जनपदे न कदर्यों न मद्यपः / / नानाहिताग्नि विद्वान् न स्वैरी स्वैरिणी कुतः॥ वस्तुतः जनपदों के जीवन की नई प्रेरक शक्ति ही वह महान धर्म थी, जिसकी ओर उसने आरम्भ में संकेत किया था। वही बद और महावीर के नीति-प्रधान धर्म के रूप में प्रकट हाई। धर्म रीति-रिवाज वाला प्राचीन समयाचारिक धर्म न था, जो किसी-न-किसी रूप में सभी जगह मिलता है। धर्म का तात्पर्य उन धारणात्मक नियमों से था, जो प्रजा और राष्ट्र को धारण करते हैं / जनपदों में उत्कृष्ट बुद्धिवाद का एक नया आदर्श पोषण पा रहा था, जिसे उस युग के साहित्य में प्रज्ञा कहा गया है। सामान्य नागरिक और शासन का भार वहन करने वाले अधिकारी दोनों के लिये प्रज्ञा या बुद्धिप्रधान जीवन का उल्लेख प्राचीन साहित्य में, विशेषतः महाभारत में आता है / इस प्रज्ञा का उन्मेष साहित्य, धर्म और दर्शन के क्षेत्र में विशेष रूप से हुआ। ब्राह्मणों का उपनिषत् साहित्य, जैनों का अंग साहित्य, और बौद्धों का त्रिपिटक साहित्य उसी जनपदीय युग के प्रज्ञाशील व्यक्तियों की देन है। तीन धाराओं में अभिव्यक्त होने पर भी यह महनीय साहित्य एक ही प्रज्ञा भावना से ओतप्रोत है / तत्त्वचिन्तन, सत्यान्वेषण, तथ्यात्मक व्यावहारिक कौशल ये इस साहित्य की समान विशेषताएं थीं। ___ जनपदों और संघों में विकसित मानवीय जीवन के उच्चस्तर की कुछ कल्पना यास्क शाकटायन, आरुणि, श्वेतकेतु, याज्ञवल्क्य, जनक, बुद्ध, महावीर, मंखलि-गोशाल आदि-आदि अनेक आचार्यों के कार्य और विचारों से की जा सकती है / .. भारतीय इतिहास में लगभग 1000 ई० पू० से 500 ई० पू० तक का युग महाजनपदयुग के नाम से प्रसिद्ध है / इसी के गर्भ में लिच्छवि, शाक्य, कुरु, मद्र, गन्धार, मालव, क्षुद्रक आदि महिमाशाली गणों और जनपदों का जीवन अन्तनिहित है / वस्तुतः स युग का पूरा महत्त्व अभी तक समझा नहीं जा सका है। यूनान के इतिहास में जो स्थान वहाँ के जगप्रसिद्ध पुरराज्यों का था, कुछ उससे भी अधिक व्यापक और चिरस्थायी पद भारतीय इतिहास में जनपद राज्यों का है। भारतीय जनपद राज्यों का प्रयोग यूनान देश से कहीं अधिक विस्तृत और महान् था। दोनों के विकास और उन्नति का समय भी लगभग एक ही था। यूनान के पुरराज्य जनपदों के समान ही नीतिधर्म के आदर्श को दिव्यगुण और ईश्वरीय सत्ता का सर्वोत्कृष्ट