________________ वैशाली का प्रजातन्त्र' महापाण्डित राहुल सांकृत्यायन वैशाली की यह भूमि कितनी पुनीत है, इसका इतिहास कितना गौरव-पूर्ण है, इसका स्मरण करते भी हृदय इतने भावों से भरा हुआ है, जिनके प्रकट करने के लिए वाणी असमर्थ है। आज 2428 वर्ष हुए, जब कि वैशाली के संघ-राज्य, जनता के पंचायती राज्य, की ध्वजा अवनत हुई और तब से निरंकुश रजुल्ले सवा चौबीस सौ वर्षों तक स्वतन्त्रता की भूमि पर मनमानी करते रहे / दूसरों की तो बात क्या, खुद वैशालीवासी भी भूल गये, कि एक समय था, जब उनकी इस गंगा और मही (गंडक)-द्वारा सिंचित वज्जी-भूमि में किसी राजा का शासन नहीं था, जनता के 7777 प्रतिनिधि सारा राज-काज चलाते थे और न्याय का इतना ध्यान था, कि अपने समय और सर्वदा के अद्वितीय महामानव बुद्ध ने अपने मुख से उसकी प्रशंसा की थी। गंगा पार का रजुल्ला अजातशत्रु वज्जी की समृद्धि-भूमि को देखकर जीम से पानी टपका रहा था और उसने एक-दो बार कोशिश भी की, किन्तु मुंहकी खानी पड़ी। इसके बारे में दीघनिकाय की अट्ठकथा में कहा है- “एक नदी के घाट के पास आधा योजन अजातशत्रु का राज्य था और आधा योजन लिच्छवियों का....."। वहाँ पर्वत के नीचे से बहुमूल्य सुगंधि माल उतरता था ।"""अजातशत्रु 'आज जाऊँ कल जाऊँ' करता रहता, उधर एकराय एकमत लिच्छवि पहले जाकर सब (कर) ले लेते। अजातशत्रु पीछे जाता और इस समाचार को सुन कुपित हो लौट आता / वे दूसरे वर्ष भी वैसा ही करते। अजातशत्रु ने अत्यन्त कुपित हो सोचा 'गण (प्रजातंत्र) के साथ युद्ध करना कठिन है, उनका एक भी प्रहार विफल नहीं जाता। किसी बुद्धिमान् से मंत्रणा करना अच्छा होगा / और इसीके लिये उसने अपने महामात्य वर्षकार ब्राह्मण को बुद्ध के पास भेजा।"२ बुद्ध का गण-संस्था के प्रति अगाध प्रेम था और वैशाली के साथ और भी अधिक, इसीसे 483. ईसा-पूर्व वैसाख मास में जब उन्होंने अन्तिम बार वैशाली को छोड़ा, तो एक बार फिर उस वीतराग ने अपने सारे शरीर को घुमाकर (नागावलोकन करके) वैशाली को 1. चतुर्थ वैशाली-महोत्सव (21 अप्रैल, 1948) में सभापति के पद से दिया गया भाषण / 2. बीघनिकाय (महापरिनिम्बाणसुत्त) अट्ठकथा /