________________ 96 Homage to Vaisali प्रयोग किया गया था और वहाँ भगवान महावीर ने जन्म धारण किया था। इन्हीं की याद में इस समय इतना बड़ा जन-समूह उमड़ पड़ा है। आपने महोत्सव की तिथि भगवान महावीर की सन्मतिथि पर रख कर बहुत अच्छा किया है, क्योंकि इसके द्वारा एक साथ ही हम किच्छिवि गणतन्त्र के स्वर्णिम दिनों और जैन धर्म के उन्नायक की याद कर लेते हैं। भगवान महावीर जैनों के चौबीसवें तीर्थकर थे। उन्होंने हमें शान्ति और विश्वभ्रातृत्व का संदेश दिया। इस प्रकार उन्होंने हमें मोक्ष का एक नवीन मार्ग दिखलाया। आज को दुनिया के लिये महावीर और बुद्ध के उपदेशों और आदर्शों का महत्व है, जहाँ चारों ओर से रह-रहकर लड़ाई झगड़े की आवाज सुनाई पड़ती रहती है। प्राचीन वैशाली में एक अद्भुत सामाजिक-राजनीतिक प्रणाली का विकास हुआ था, जिसमें जनता के सात हजार सात सौ सात प्रतिनिधि शासन करते थे। गौतम बुद्ध ने अपने (बौद्ध) संघ की शासन-प्रणाली लिच्छिवियों, मंत्रों और शास्त्रों की राजनीतिक पद्धति से ही ली थी। उस दृश्य का अंदाज कीजिये जब इस भूमि पर जनता के प्रतिनिधि बैठकर शासन-सम्बन्धी निर्णय करते थे, जबकि इसके इर्दगिर्द राजतन्त्र का बोलबाला था। लिच्छिवियों की न्याय-प्रणाली खास तौर से जिक्र करने लायक है। जब तक अपराध साबित न होता था, तबतक लोगों को सजा न हो सकती थी। इसके लिये उन्हें कई अवस्थाओं से गुजरना पड़ता था। अन्त में जब अपराध साबित हो जाता और अपील के लिये कोई उच्चतर सत्ता न बचती तब दंड-विधान देखकर सजा दी जाती थी। इस प्रकार की न्याय-प्रणाली हम भी अपना सकते हैं। हाँ यह दूसरी बात है कि समय बदलने के कारण उसमें उपयुक्त परिवर्तन करना पड़ जायगा। आजकल की पंचायतों के जरिये इस प्रकार का प्रयोग संभव है और होना चाहिये। मेरी निश्चित धारणा है कि हमारे गांवों को, सीमित क्षेत्रों में ही सही, न्याय का प्रशासन स्वयं ही करना चाहिये / तभी हम स्वायत्त शासन का ठीक अर्थ जान सकेंगे। मैं गत चालोस वर्षों से इस स्थान की यात्रा करने को सोचता रहा था। लेकिन आज ही वह इच्छा पूरी हुई है। मैं वैशाली में एक तीर्थयात्री के रूप में आया हूँ, जिस प्रकार प्राचीन काल में फाहियान और हुएनसांग आये थे / मैं इसकी महत्ता का पुजारी हूँ। यहां की चीजें देखकर और यहां के लोगों से मिलकर मुझे जो खुशो हुई है, उसका मैं शब्दों में ब्यान नहीं कर सकता / मुझे इससे सर्वांगीण संतोष की प्राप्ति हुई है। ___अन्त में मैं यह कहकर अपना भाषण समाप्त करता हूँ कि यदि लोग महावीर और बुद्ध के उपदेशों का पालन करें, तो चोर बाजारी और कचहरियों में झुठ बोलने की आदत तुरत ही खतम हो जाय।