Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 18
________________ १५६ १४३ १४५ [17] 00000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 क्रं. विषय पृष्ठ | क्रं. विषय पृष्ठ ११६. अविनीत शिष्य और दुष्ट बैल १३५ | १३०. दर्शनाचार के भेद १५७ ११७. कुशिष्य और गर्गाचार्य १३७ | १३१. सम्यक्चारित्र का स्वरूप ११८. कुशिष्यों का त्याग १४० | १३२. सम्यक् तप का स्वरूप १६३ ११६. गर्गाचार्य का एकाकी विचरण १४१ | १३३. ज्ञानादि की उपयोगिता १६४ मोक्षमार्ग गति नामक अट्ठाईसवां | १३४. उपसंहार १६४ __ अध्ययन १४२-१६४ | सम्यक्त्वपराक्रम नामक उनतीसवां १२०. मोक्षमार्ग का स्वरूप १४२ अध्ययन १६५-२२६ १२१. मोक्षमार्ग का फल | १३५. सम्यक्त्व पराक्रम का फल १६५ १२२. सम्यग्ज्ञान के भेद १४४ | १३६. सम्यक्त्व पराक्रम के ७३ मूल सूत्र १६७ १२३. द्रव्य, गुण और पर्याय १. संवेग १६९ २. निर्वेद १७१ १२४. षट् द्रव्य १४६ ३. धर्म श्रद्धा .१२५. नव तत्त्वों के नाम १४६ ४. गुरु-साधर्मिक शुश्रूषा ૧૦૨ १२६. सम्यग्दर्शन का स्वरूप १४६ ५. आलोचना १२७. सम्यक्त्व की रुचियाँ १५० ६. निन्दना ७. गर्हणा १७६ १. निसर्ग रुचि ८. सामायिक १७६ २..उपदेश रुचि ९. चतुर्विंशतिस्तव ३. आज्ञा रुचि १०. वन्दना १७७ ४. सूत्र रुचि ११. प्रतिक्रमण १७८ ५. बीज रुचि १५३ १२. कायोत्सर्ग ६. अभिगम रुचि १३. प्रत्याख्यान १७९. ७. विस्तार रुचि १४. स्तव स्तुति मंगल १८० ८. क्रिया रुचि १५४ १५. काल प्रतिलेखना १८ ८. संक्षेप रुचि १५४ १६. प्रायश्चित्तकरण १८१ १०. धर्मरुचि १५४ १७. क्षमापना १८२ १२८. सम्यक्त्व की श्रद्धना १५५ १८. स्वाध्याय १८३ १२६. सम्यक्त्व की महिमा १९. वाचना १७२ १७४ १७५ १५१ १७७ ॐॐॐ १७९ १५३ १५३ १५६ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 ... 450