Book Title: Tulsi Prajna 2006 04
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 19
________________ ६. जैन वाड्मय में अष्टमंगल जैन वाड्मय में अनेक मांगलिक द्रव्यों का निर्देश मिलता है, जिनमें आठ प्रमुख हैं- स्वस्तिक, श्रीवत्स, नन्द्यावर्त्त, वर्धमानक, भद्रासन, कलश, मत्स्य और दर्पण । इन्हें ही अष्टमंगल, प्राकृत में अट्ठमंगल कहा जाता है । भगवतीसूत्र में सर्वप्रथम आठ मंगलों का निर्देश मिलता है - सोत्थिय- सिरिवच्छ- नंदियावत्त-वद्धमाणग-भद्दासण-कलसमच्छदप्पणा |14 मेघकुमार की पुरुषसहस्त्रवाहिनी (हजार पुरुषों द्वारा ले जायी जाने वाली) शिविका के सामने अष्टमंगल का उल्लेख है - तं जहा सोवित्थय - सिरिवच्छं । 15 अर्थात् स्वस्तिक, श्रीवत्स, नन्द्यावर्त्त, वर्द्धमानक, भद्रासन, कलश, मत्स्य और दर्पण । औपपातिक सूत्र " में अशोकवरपादप के ऊपर आठ मंगलों का निर्देश है। हस्तिरत्न पर आरूढ भिंभिसार पुत्र के अभिषेक काल में सामने आठ मंगल यथाक्रम से रखे गए थे।" 1 औपपातिक सूत्र में ही अष्ट मंगलों के स्वरूप विषयक कुछ विशेषण पदों का भी उल्लेख हुआ है। श्रेष्ठ अशोक वृक्ष के ऊपर बने ये अष्ट मंगल जात्यरत्नों के बने हुए, सुन्दर, कोमल, मलारहित, रजरहित, घसे हुए, मार्जित किए हुए, निरूपम एवं सुन्दर प्रकाश से युक्त दर्शनीय एवं रमणीय थे । राजप्रश्नीयसूत्र में औपपातिक सूत्र के समान ही अष्टमंगल का स्वरूप विवृणित है । सूर्याभदेव का विमान अष्टमंगलों से सुशोभित था । " सिद्धायतन में विद्यमान जिन प्रतिमाओं के सामने अष्टमंगल बने हुए थे 120 जीवाजीवाभिगमसूत्र में तोरणद्वारों पर अष्टमंगलों की रचना का वर्णन प्राप्त है ( एक प्रसादावतंसक श्रेष्ठ भवन) अष्टमंगलों से सुशोभित था । दिगम्बर साहित्य में अनेक स्थलों पर अष्टमंगल का निर्देश मिलता है। तिलोयपण्णत्ति में उल्लिखित है 22भिंगारकलसदप्पणचामर धयवियणछत्तसुपयट्ठा अर्थात् भृंगार, कलश, दर्पण, चंवर, ध्वजा, बीजना और सुप्रतिष्ठ- ये आठ मंगलद्रव्य हैं । जैन पुराणों में अनेक स्थल पर मांगलिक द्रव्यों का निरूपण मिलता है। छत्र, चमर, ध्वजा, भंगार ( झारी), कलश, सुप्रतिष्ठक (ठौना) दर्पण और व्यंजन (व्यंजन) आदि मांगलिक द्रव्य हैं, जिनसे पाण्डुकशिलाविभूषित रहती है। समवसरण के गापुरद्वार भी इससे अलंकृत रहते हैं । 3 इस प्रकार आगम साहित्य में अनेक स्थलों पर अष्टमंगलों का वर्णन मिलता है। जैन पुराणों, चरितकाव्यों एवं महाकाव्यों में भी अष्टमंगल का वर्णन मिलता है। ६. १ स्वस्तिक स्वस्तिक शब्द दो शब्दों के मेल से बना है - स्वस्तिक और क । सु उपसर्गपूर्वक 'अस-भुवि' धातु से सावसे: 24 सूत्र से ति प्रत्यय होकर स्वस्ति बनता है । आशीर्वाद, क्षेम, तुलसी प्रज्ञा अंक 131 14 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122