Book Title: Tulsi Prajna 2006 04
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 70
________________ साधना-साध्य - आदर्श -समाज की प्राप्ति के लिए गाँधी अहिंसात्मक उपायों के प्रयोग के सम्बन्ध में कृत संकल्प हैं। इस दृढ़ता का आधार गाँधीवादी अध्यात्म-दर्शन और आचार शास्त्र में प्राप्त होता है। जहाँ साधन और साध्य अन्योन्याश्रित है, वहीं मार्क्सवादी दृष्टिकोण यह औचित्य सिद्ध करते हैं कि साध्य और साधन परस्पर परिवर्तनीय पद है और साध्य का उदय साधन से होता है। जिस प्रकार वृक्ष का उदय बीज से होता है। साधन और साध्य के मध्य का ठीक वैसा ही अनुलंघनीय सम्बन्ध है, जैसा बीज और वृक्ष के मध्य। उन्हें एक-दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता है। बुरे साधन द्वारा अच्छे साध्य की प्राप्ति कभी नहीं हो सकती। शोषण और उत्पीड़न से मुक्त गाँधीवादी अहिंसात्मक समाज जैसे साहस की प्राप्ति के लिए साधन भी अहिंसक होने चाहिए। गांधी ने कहा था- जनसमूह का प्रजातंत्र या स्वराज्य असत्यपूर्ण और हिंसात्मक उपायों के माध्यम से कभी नहीं आ सकता, क्योंकि उनके प्रयोग का स्वाभाविक परिणाम होगा सम्पूर्ण विपदा की प्रतिनिधियों के दमन या ध्वंस द्वारा समाप्त करना। इससे वैयक्तिक स्वतन्त्रता उत्पन्न नहीं होगी। गाँधीजी का साधन के प्रति उनका विशेष आग्रह गीता के निष्काम कर्म के आदर्श से उद्भूत हुआ है।” वे मार्क्सवाद के इस आधारभूत तत्व को स्वीकार करते हैं कि मात्र कर्म के द्वारा ही आस्था की परीक्षा हो सकती है। लेकिन ऐतिहासिकता की रक्षा के लिए मार्क्स में जिसकी बलि दे दी उस अनुभवमूलक नियन्त्रण आधार मूलक आधार को प्रस्तुत करने के कारण गांधी मार्क्स से एक पग आगे हैं। जहाँ मार्क्स ने विषय वस्तु का सूत्रपात किया है और संघर्षों के स्वरूप और उनकी दिशा का पहले ही निर्धारण कर लिया है वहाँ गांधी का इस बात पर आग्रह है कि प्रक्रिया और पद्धति का उचित होना आवश्यक है। गाँधी के लिए उस पद्धति का अर्थ वह अहिंसात्मक पद्धति है, जो सामाजिक मतभेदों को दूर करती है और सम्बन्धों को रचनात्मक तथा शान्तिपूर्व ठंग से संचालित करती है। उनके अनुसार साधन और साध्य के बीच कोई द्वैत नहीं है। दोनों ही समान रूप से शाश्वत प्रक्रिया है। आर्थिक समानता - मार्क्सवादी विचारक समता लाने के लिए पूंजीपतियों के प्रति प्रतिशोध का भाव रखते हैं। गाँधी पूंजीपति के प्रति न तो ईर्ष्या रखते हैं और ना ही प्रतिशोध का भाव रखते हैं। वे केवल पूंजीवादी व्यवस्था का उन्मूलन करना चाहते हैं। मार्क्सवादियों का यह तुलसी प्रज्ञा अप्रेल- जून, 2006 - 65 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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